गाँव के सरसों के खेतों में, हवा पीले फूलों को सहलाते हुए बह रही थी, और महेश की यादें जैसे किसी चित्र की तरह उसके सामने उभरने लगीं। उसकी यादों में नेहा हमेशा चमकती हुई, एक मासूम मुस्कान के साथ, बेमायने से दौड़ती-भागती रहती थी। जब भी वो हंसते हुए उसे 'महेश बाबू' कहकर बुलाती, महेश के दिल में एक अनकही खुशी का संचार होता।
“तब हम कितने बेफिक्र हुआ करते थे,” महेश ने धीमे से कहा, उसकी आँखों में पुराने दिनों की छवि उभर आई। हर बार जब वो नेहा के साथ होता, उसे एक अजीब सी खुशी महसूस होती थी। उन दोनों ने एक साथ कई सुनहरे पल बिताए थे, खेतों में दौड़ते हुए, पतंगों के पीछे भागते हुए। महेश के लिए नेहा सिर्फ ठाकुर की बेटी नहीं थी, बल्कि उसकी दुनिया की एकमात्र रोशनी थी। उसकी हंसी, उसका चेहरा, उसकी हर एक हरकत महेश के दिल को बेकाबू कर देती थी।
समय के साथ, नेहा की ज़िंदगी बदलने लगी। उसकी उम्र बढ़ रही थी, और उसे घर के नियम-कायदों में बाँध दिया गया। अब वो महेश के साथ उतना समय नहीं बिता सकती थी। यह दूरी केवल शारीरिक नहीं थी, बल्कि समाज और जाति के बंधनों की एक दीवार थी, जो उन दोनों के बीच खड़ी हो चुकी थी। फिर भी, महेश का दिल हमेशा नेहा की तरफ खिंचा रहता था। हर पल, हर सांस में वो सिर्फ उसे ही महसूस करता था।
फिर एक दिन, नेहा ने आंसुओं से भरी आँखों से कहा, “दादू ने कहा कि अब मैं बड़ी हो गई हूँ और नौकरों के साथ घूमना ठीक नहीं है।” उस पल महेश का दिल टूट गया, पर वो कुछ कह नहीं सका। उसने बस चुपचाप यह सच कबूल कर लिया, कि उनकी दुनिया अब अलग हो चुकी है।
समय बीतता गया। नेहा ने गाँव आना बंद कर दिया। लेकिन महेश वहीं था, अपनी जगह पर, उसके लौटने का इंतज़ार करते हुए। वो हर रोज़ उसकी यादों के सहारे जी रहा था। उसके दिल में अब भी वो हंसी, वो मासूमियत थी, जो कभी फीकी नहीं पड़ी थी। वो हर सुबह उम्मीद से जागता, कि शायद आज फिर से वो दिन लौट आएगा।
फिर कॉलेज के दिनों में, एक दिन महेश ने नेहा को फिर से देखा। चार साल बाद, वो उसे देखकर स्तब्ध रह गया। लेकिन उसकी आंखों में वो चमक नहीं थी, जो कभी हुआ करती थी। नेहा अब एक खामोश और उदास लड़की थी, जिसने शायद अपने पुराने दिन कहीं पीछे छोड़ दिए थे। महेश के दिल में एक उथल-पुथल मची हुई थी। वो उससे बात करना चाहता था, लेकिन उसका डर उसे रोकता था। उसे लगता था, कहीं वो नेहा की जिंदगी में कोई और परेशानी न खड़ी कर दे।
हर रोज़ महेश उसे कॉलेज में देखता, लेकिन दोनों के बीच की खामोशी कभी नहीं टूटी। महेश अपने दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। अंततः, जब उसकी पढ़ाई खत्म हो गई, उसने अपने दिल से कहा, “शायद यह वो चाँद है, जिसे दूर से देखना ही ठीक है, पास लाने की कोशिश करना व्यर्थ है।”
कॉलेज खत्म होने के कुछ समय बाद महेश को एक सरकारी बैंक में मैनेजर की नौकरी मिल गई। ज़िंदगी अब उसे आगे ले जा रही थी, लेकिन उसके दिल का एक हिस्सा हमेशा पीछे छूटा हुआ था, उसी नेहा की यादों में, जिसने कभी उसकी ज़िंदगी को रोशन किया था। हर रोज़, महेश कॉलेज के रास्ते पर खड़ा होता, बस एक बार फिर से नेहा की झलक पाने के लिए।
फिर एक दिन, कई सालों बाद, महेश को नेहा का एक ख़त मिला। वो खत उसकी पुरानी यादों की तरह था, जैसे अतीत से आ रही एक आवाज़, जो उसके दिल की गहराइयों को झकझोर गई।
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**नेहा का खत**
**मेरे प्यारे महेश बाबू,**
जब तुम ये खत पढ़ोगे, तब तक शायद मैं इस दुनिया में रहूं या नहीं, मुझे नहीं पता। लेकिन सच्चाई ये है कि आज भी तुम मेरे लिए उतने ही प्यारे हो, जितने बचपन में थे।
मुझे याद है वो दिन, जब दादू ने मुझे गाँव आने से रोक दिया था। लेकिन मैं तुमसे मिलने के लिए दादू से लड़ पड़ी थी। दादू ने मुझे धमकी दी थी कि अगर मैं तुमसे मिलती रही तो वो तुम्हें जान से मार देंगे। उस पल मेरा दिल बैठ गया था, लेकिन मैं तुम्हें किसी भी हालत में मरते हुए नहीं देख सकती थी, इसलिए मैंने गाँव आना बंद कर दिया।
वो दिन जब मैंने तुम्हें घर में देखा, मैं बहुत खुश हुई थी। पर पिताजी ने तुम्हें मारा, और मैं बेबस खड़ी रह गई। उसके बाद, जब तुम मेरे घर के पास आते, तो मैं तुम्हें चुपके से देखती और खुश होती। तुम्हारी एक झलक ही मेरे लिए सब कुछ थी। लेकिन फिर तुम आना बंद हो गए और मेरी खुशियाँ भी खत्म हो गईं।
जब कॉलेज में मैंने तुम्हें फिर से देखा, तो मैं अपने दिल को रोक नहीं पाई। लेकिन मुझे डर था, कि अगर मैंने तुमसे बात की, तो फिर वही खतरा तुम्हें घेर लेगा। शादी से पहले बैंक में जब मैंने तुम्हें देखा, तब भी मैं तुम्हें ये नहीं बता सकी कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ।
मैंने बेटी होने का फर्ज निभाया, पत्नी होने का धर्म निभाया, पर अपने प्यार को कभी नहीं निभा पाई। अगर हो सके, तो मेरे आखिरी समय में एक बार मुझसे मिलने आ जाना। तुम्हें देखकर शायद मैं चैन से इस दुनिया से जा सकूँ।
**तुम्हारी नेहा**
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महेश का दिल टूट चुका था। वो भागते-भागते अस्पताल पहुंचा, आँसुओं से भरी आँखों के साथ। जब वो नेहा के कमरे में गया, तो उसने देखा कि नेहा की आँखों में भी आँसू थे। वो एक-दूसरे को देखते रहे, कोई शब्द नहीं थे, बस अनकही भावनाओं का सैलाब था।
आखिरकार, नेहा की सांसें धीमी हो गईं, और फिर हमेशा के लिए थम गईं।
अधूरा प्यार
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