Most Heart Touching Hindi Love Story
Posted: Tue Oct 22, 2024 2:42 am
ये कहानी उस दौर की है जब कॉलेज में दो कंपनियाँ आकर चली गईं थीं और मेरा प्लेसमेंट अभी नहीं हुआ था। हौसला बढ़ाने के लिए घर पर माँ थीं, और महीने में एक बार पिताजी फोन करके पैसे पूछते थे। लेकिन मैं उन्हें अपनी मनोदशा बताना नहीं चाहता था।
मेरे पास एक और थी, जो सब जानती थी और इस सफर का हिस्सा रही थी, 2004 से 2008 तक। कहानी अब 2005 में है, जब इंजीनियरिंग कॉलेज में एक साल पूरा हो चुका था। तमाम रैगिंग और शुरुआती इंटरैक्शंस के बावजूद, मैं किसी से ज्यादा घुल-मिल नहीं पाया था।
वो मेरे आस-पास थी। कई बार बुक बैंक में नज़रें मिलीं, एक ही टेबल पर पढ़े, नेस्कैफे में एक ही ग्रुप में कॉफी पी थी। लेकिन मैं सिर्फ उसका नाम जान पाया था और ये भी नहीं पता था कि वो मुझे नाम से जानती है या नहीं।
मुझे याद है हमारी पहली बातचीत एनुअल कॉलेज फेस्ट में हुई थी। हम दोनों नीली जीन्स और ग्रे टी-शर्ट में आए थे। कॉलेज रॉक बैंड के परफॉर्मेंस के दौरान हम पीछे खड़े होकर बाकी लोगों को नाचते देख रहे थे। शायद मन था भीड़ में शामिल होने का, लेकिन झिझक भी थी। इसी लिए हर बीट पर हमारे दाहिने पैर टैप कर रहे थे।
तब मैंने तुम्हारा नाम लेकर बातें शुरू की थीं और उन लोगों पर जो नाच रहे थे, जोक मारा था। तुम खिलखिला के हंस पड़ी थीं। फिर तुमने मुझसे पूछा कि मैं रेगुलरली बुक बैंक क्यों नहीं आता हूँ, और मैंने जवाब दिया—"बस यूं ही।" तुम फिर मुस्कुराईं थीं।
उस दिन हमने फोन नंबर भी एक्सचेंज किए। फेस्ट खत्म होने के बाद, मैं तुम्हारे साथ वाक करते हुए तुम्हारे हॉस्टल के गेट तक गया था। तुम मेरे फालतू जोक्स पर भी हंसती रहीं थीं।
उस शाम मैंने सिगरेट नहीं पी और रात में लगभग 12:30 बजे अपने नोकिया 1100 से "It was nice talking to you" मैसेज किया। तुरंत मेरे फोन की बीप बजी—वो मैसेज की डिलीवरी रिपोर्ट थी।
2 मिनट बाद तुम्हारा रिप्लाई आया—"same here
" अगले दिन मैं अपने रूम पार्टनर की प्रेस की हुई शर्ट पहनकर कॉलेज पहुंचा और हमारी बातों का सिलसिला शुरू हो गया। कैंटीन से लेकर कॉफी तक और लैब से लेकर बुक बैंक तक, हम साथ रहते थे।
मुझे याद है तुम कैसे पढ़ते वक्त अपनी उँगलियों में पेन घुमाया करती थीं और न्यूमेरिकल सॉल्व करते वक्त अपने बालों की लट को कान के पीछे ले जाती थीं। मैं तुम्हें देखता रहता था, डरता था कि कहीं तुम मुझसे कुछ पूछ न लो।
मैं कोशिश करता था कि फोन मेमोरी फुल होने पर तुम्हारे मैसेज डिलीट न करूँ। वो "साथिया" की रिंगटोन जो तुमने भेजी थी, वो तब तक मेरी रिंगटोन रही जब तक वो फोन मेरे पास रहा।
तुम कहती थीं कि हर कैसेट में दूसरा गाना बेस्ट होता है। मैं नहीं भूल सकता वो शाम जब हम पहली बार फिल्म देखने गए थे। मैंने दोस्त की CBZ उधार ली थी और फिल्म से लौटते वक्त गोल गप्पे खाए थे।
उस शाम जब मैंने तुम्हें हॉस्टल छोड़ा, तब हमने घंटों बेवजह की बातें की थीं। तुम अंदर नहीं जाना चाहती थीं और मैं भी वापस नहीं जाना चाहता था। बातों-बातों में रात का 1 बज गया था।
मैं नहीं भूल सकता वो अनगिनत बार जब तुमने कहा था कि मेरे जैसे लोग इस दुनिया में रेयर हैं और तुम लकी हो मुझ जैसा दोस्त पाकर। अगले 3 साल हम साथ रहे—कई बार लड़े, लेकिन हर बार एक हफ्ते की ख़ामोशी के बाद बात करने की शुरुआत कर ली।
आखिरी सेमेस्टर से पहले सब ठीक चला। तुम CAT की तैयारी करती रहीं और मैं कैंपस प्लेसमेंट की। याद है जब कंपनी आने का नोटिफिकेशन हमने साथ देखा था? कंपनी क्राइटेरिया में "थ्रूआउट फर्स्ट क्लास" मांगा गया था। मैं उदास हो गया था, जबकि तुम्हारी आँखों में चमक थी।
तुमने कहा कि चलो अच्छा है, कम्पटीशन कम हो जाएगा, लेकिन तुम मेरी आँखें नहीं पढ़ पाईं थीं। खैर मैंने कभी बताया नहीं कि कैसे बारहवीं के पेपरों में मेरा अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ था और मैं बिना फेल हुए बाहर हो गया।
जिस दिन इंटरव्यू हुए, मैं कॉलेज ही नहीं आया। तुम्हें बेस्ट ऑफ़ लक का मैसेज किया और हॉस्टल के कमरे में बैठा रहा। शाम को तुम्हारा मैसेज आया—"सिलेक्टेड"। मैंने "Congrats" रिप्लाई किया और तुमने बताया कि किसका सिलेक्शन हुआ है।
2 दिन बाद तुम्हारे साथ सेलेक्ट हुए लोगों की पार्टी की खबर भी आई।
अगली कंपनी आई, उसमें भी वही क्राइटेरिया था। मैं अब निराश हो चला था और तुम्हारे दोस्त बदल चुके थे—अब तुम्हारे पास नया ग्रुप था जो उस कंपनी में प्लेस हुए थे।
आखिरी सेमेस्टर में तुम्हारे बुक बैंक के साथी भी बदल गए थे और मैंने भी बुक बैंक आना बंद कर दिया था। अब मैसेज टोन भी कम बजती थी और "साथिया" वाली रिंगटोन मैंने सिर्फ तुम्हारे नंबर पर ही असाइन कर दी थी।
हम दोनों के बीच एक awkward सी ख़ामोशी आ चुकी थी। कई बार मैंने तुम्हें फोन करके रोना चाहा, अपनी असफलता की कहानियाँ सुनाना चाहा, लेकिन कई बार नंबर डायल करके रिंग जाने से पहले ही काट दिया।
फाइनल एग्जाम वाले दिन हम लगभग अजनबी की तरह मिले। तुमने पिछले 3 साल याद किए और बताया कि कैसे "I have been the best person you have ever met." हमने एक बार फिर कॉफी पी, जो संभवतः हमारी आखिरी कॉफी थी।
जब कॉफी खत्म हुई तो मैंने पूछा—"चलो हॉस्टल छोड़ देता हूँ?" तुमने मुस्कुरा कर कहा—"नहीं, अभी किसी के साथ मूवी का प्लान है," उस "किसी" का अंदाजा मुझे भी था क्योंकि वो नेस्कैफे के पीछे से मुझे देख रहा था।
पर जिसकी किस्मत ने ली हो, वो दर्द से कराह भी नहीं पाता। मैं चुप रहा और तुमने जाते-जाते कहा—"Be in touch."
आज अचानक बंगलौर में कोरमंगला में कॉफी पीते तुम दिखीं उसी "किसी" के साथ…और तुम्हारे सामने वाली टेबल पर बैठा मैं अपने तीन आईआईएम बैचमेट्स के साथ…2004-2008 सब आँखों के सामने तैर गया…तुम देख कर भी खामोश रहीं…और मैंने बिना किसी बात टेबल पर हाथ मारकर खिलखिला कर हंस दिया
मेरे पास एक और थी, जो सब जानती थी और इस सफर का हिस्सा रही थी, 2004 से 2008 तक। कहानी अब 2005 में है, जब इंजीनियरिंग कॉलेज में एक साल पूरा हो चुका था। तमाम रैगिंग और शुरुआती इंटरैक्शंस के बावजूद, मैं किसी से ज्यादा घुल-मिल नहीं पाया था।
वो मेरे आस-पास थी। कई बार बुक बैंक में नज़रें मिलीं, एक ही टेबल पर पढ़े, नेस्कैफे में एक ही ग्रुप में कॉफी पी थी। लेकिन मैं सिर्फ उसका नाम जान पाया था और ये भी नहीं पता था कि वो मुझे नाम से जानती है या नहीं।
मुझे याद है हमारी पहली बातचीत एनुअल कॉलेज फेस्ट में हुई थी। हम दोनों नीली जीन्स और ग्रे टी-शर्ट में आए थे। कॉलेज रॉक बैंड के परफॉर्मेंस के दौरान हम पीछे खड़े होकर बाकी लोगों को नाचते देख रहे थे। शायद मन था भीड़ में शामिल होने का, लेकिन झिझक भी थी। इसी लिए हर बीट पर हमारे दाहिने पैर टैप कर रहे थे।
तब मैंने तुम्हारा नाम लेकर बातें शुरू की थीं और उन लोगों पर जो नाच रहे थे, जोक मारा था। तुम खिलखिला के हंस पड़ी थीं। फिर तुमने मुझसे पूछा कि मैं रेगुलरली बुक बैंक क्यों नहीं आता हूँ, और मैंने जवाब दिया—"बस यूं ही।" तुम फिर मुस्कुराईं थीं।
उस दिन हमने फोन नंबर भी एक्सचेंज किए। फेस्ट खत्म होने के बाद, मैं तुम्हारे साथ वाक करते हुए तुम्हारे हॉस्टल के गेट तक गया था। तुम मेरे फालतू जोक्स पर भी हंसती रहीं थीं।
उस शाम मैंने सिगरेट नहीं पी और रात में लगभग 12:30 बजे अपने नोकिया 1100 से "It was nice talking to you" मैसेज किया। तुरंत मेरे फोन की बीप बजी—वो मैसेज की डिलीवरी रिपोर्ट थी।
2 मिनट बाद तुम्हारा रिप्लाई आया—"same here

मुझे याद है तुम कैसे पढ़ते वक्त अपनी उँगलियों में पेन घुमाया करती थीं और न्यूमेरिकल सॉल्व करते वक्त अपने बालों की लट को कान के पीछे ले जाती थीं। मैं तुम्हें देखता रहता था, डरता था कि कहीं तुम मुझसे कुछ पूछ न लो।
मैं कोशिश करता था कि फोन मेमोरी फुल होने पर तुम्हारे मैसेज डिलीट न करूँ। वो "साथिया" की रिंगटोन जो तुमने भेजी थी, वो तब तक मेरी रिंगटोन रही जब तक वो फोन मेरे पास रहा।
तुम कहती थीं कि हर कैसेट में दूसरा गाना बेस्ट होता है। मैं नहीं भूल सकता वो शाम जब हम पहली बार फिल्म देखने गए थे। मैंने दोस्त की CBZ उधार ली थी और फिल्म से लौटते वक्त गोल गप्पे खाए थे।
उस शाम जब मैंने तुम्हें हॉस्टल छोड़ा, तब हमने घंटों बेवजह की बातें की थीं। तुम अंदर नहीं जाना चाहती थीं और मैं भी वापस नहीं जाना चाहता था। बातों-बातों में रात का 1 बज गया था।
मैं नहीं भूल सकता वो अनगिनत बार जब तुमने कहा था कि मेरे जैसे लोग इस दुनिया में रेयर हैं और तुम लकी हो मुझ जैसा दोस्त पाकर। अगले 3 साल हम साथ रहे—कई बार लड़े, लेकिन हर बार एक हफ्ते की ख़ामोशी के बाद बात करने की शुरुआत कर ली।
आखिरी सेमेस्टर से पहले सब ठीक चला। तुम CAT की तैयारी करती रहीं और मैं कैंपस प्लेसमेंट की। याद है जब कंपनी आने का नोटिफिकेशन हमने साथ देखा था? कंपनी क्राइटेरिया में "थ्रूआउट फर्स्ट क्लास" मांगा गया था। मैं उदास हो गया था, जबकि तुम्हारी आँखों में चमक थी।
तुमने कहा कि चलो अच्छा है, कम्पटीशन कम हो जाएगा, लेकिन तुम मेरी आँखें नहीं पढ़ पाईं थीं। खैर मैंने कभी बताया नहीं कि कैसे बारहवीं के पेपरों में मेरा अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ था और मैं बिना फेल हुए बाहर हो गया।
जिस दिन इंटरव्यू हुए, मैं कॉलेज ही नहीं आया। तुम्हें बेस्ट ऑफ़ लक का मैसेज किया और हॉस्टल के कमरे में बैठा रहा। शाम को तुम्हारा मैसेज आया—"सिलेक्टेड"। मैंने "Congrats" रिप्लाई किया और तुमने बताया कि किसका सिलेक्शन हुआ है।
2 दिन बाद तुम्हारे साथ सेलेक्ट हुए लोगों की पार्टी की खबर भी आई।
अगली कंपनी आई, उसमें भी वही क्राइटेरिया था। मैं अब निराश हो चला था और तुम्हारे दोस्त बदल चुके थे—अब तुम्हारे पास नया ग्रुप था जो उस कंपनी में प्लेस हुए थे।
आखिरी सेमेस्टर में तुम्हारे बुक बैंक के साथी भी बदल गए थे और मैंने भी बुक बैंक आना बंद कर दिया था। अब मैसेज टोन भी कम बजती थी और "साथिया" वाली रिंगटोन मैंने सिर्फ तुम्हारे नंबर पर ही असाइन कर दी थी।
हम दोनों के बीच एक awkward सी ख़ामोशी आ चुकी थी। कई बार मैंने तुम्हें फोन करके रोना चाहा, अपनी असफलता की कहानियाँ सुनाना चाहा, लेकिन कई बार नंबर डायल करके रिंग जाने से पहले ही काट दिया।
फाइनल एग्जाम वाले दिन हम लगभग अजनबी की तरह मिले। तुमने पिछले 3 साल याद किए और बताया कि कैसे "I have been the best person you have ever met." हमने एक बार फिर कॉफी पी, जो संभवतः हमारी आखिरी कॉफी थी।
जब कॉफी खत्म हुई तो मैंने पूछा—"चलो हॉस्टल छोड़ देता हूँ?" तुमने मुस्कुरा कर कहा—"नहीं, अभी किसी के साथ मूवी का प्लान है," उस "किसी" का अंदाजा मुझे भी था क्योंकि वो नेस्कैफे के पीछे से मुझे देख रहा था।
पर जिसकी किस्मत ने ली हो, वो दर्द से कराह भी नहीं पाता। मैं चुप रहा और तुमने जाते-जाते कहा—"Be in touch."
आज अचानक बंगलौर में कोरमंगला में कॉफी पीते तुम दिखीं उसी "किसी" के साथ…और तुम्हारे सामने वाली टेबल पर बैठा मैं अपने तीन आईआईएम बैचमेट्स के साथ…2004-2008 सब आँखों के सामने तैर गया…तुम देख कर भी खामोश रहीं…और मैंने बिना किसी बात टेबल पर हाथ मारकर खिलखिला कर हंस दिया