by aries » Wed Nov 06, 2024 3:06 am
कमरे में रखे रेडियो पर हल्की आवाज में गाना गूंज रहा था। वर्कशॉप खत्म हो गई थी, लेकिन वे दोनों हमेशा की तरह वहीं बैठे बातें कर रहे थे।
"तो तुमने मुझे बताया क्यों नहीं कि तुम बी.कॉम. तक पढ़े हो?" उसने थोड़ी नाराजगी से पूछा।
"तो क्या हुआ? मैं अभी बता रहा हूँ," समीर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"तो तुम्हारा एक्सीडेंट कब हुआ?" उसने फिर से पूछा।
"फाइनल ईयर में, एक्जाम से ठीक पहले। आँखों का जाना दुखद है, लेकिन इससे बड़ा दुख यह है कि मैं बी.कॉम. पास नहीं कर सका। अगर थोड़ा और समय होता, तो जिस डिग्री के लिए मैंने इतनी मेहनत की थी, वह मुझे फाइनल ईयर में नहीं छोड़नी पड़ती," वह हंसते हुए बोला।
"शट अप! यह मजेदार नहीं है..." उसने फिर से शिकायत की।
"ठीक है... मुझे माफ कर दो। अच्छा बताओ, आज वर्कशॉप में क्या सिखाया?" लड़के ने पूछा।
"हमें उस विशेष टाइपिंग मशीन पर टाइपिंग करना सिखाया जा रहा है जो अंधों के लिए बनाई गई है। लेकिन मैं सोचती हूँ कि अगर मैंने टाइपिंग सीख भी ली, तो मुझे कैसे पता चलेगा कि मैंने कोई गलती नहीं की है, क्योंकि मैं तो देख ही नहीं सकती," उसने कहा।
पिछले दो साल से, वे दोनों 'साइट फॉर ब्लाइंड्स' नाम की वर्कशॉप में जा रहे थे, जहाँ अंधे लोगों को तरह-तरह के कौशल सिखाए जाते थे।
"तो कुछ सुनाओ ना," लड़की बोली।
"हम्... तुझसे दूर जिधर जाऊं मैं... चलू दो कदम और ठहर जाऊं मैं... दुनिया खफा रहे तो परवाह नहीं कोई... तू खफा हो तो मर जाऊं मैं..." लड़का गाने लगा।
"क्या खूब लिखते हो तुम! तुम्हें तो लेखक होना चाहिए," उसने तारीफ की।
"सोचूंगा," वह बात टालते हुए बोला।
"जानती हो, अगर मेरी आँखें होतीं तो सबसे पहला काम मैं क्या करती?"
"क्या?" समीर ने उत्सुकता से पूछा।
"तुमसे शादी," लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा।
कमरे में थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा गई।
"हाँ, क्यों नहीं, हम शादी कर लेते हैं, हाल-फिलहाल में," लड़का गंभीर होते हुए बोला।
"समीर, हम दोनों देख पाने से मजबूर हैं। दो कमजोर लोग मिलकर एक मजबूत घर की नींव नहीं रख सकते," लड़की ने कहा।
"मतलब, अगर हम दोनों में से कोई भी देख सकता तो तुम मुझसे शादी कर लेती?" समीर ने पूछा।
"कोई भी नहीं, मैं। मैं उस शादी के ख्वाब को अपनी आँखों से सच होते हुए देखना चाहती हूँ," लड़की ने धीरे से कहा।
"तो ठीक है," समीर ने कहा, एक हल्की मुस्कान के साथ।
"क्या हमारे ख्वाब कभी सच होंगे समीर? क्या हम कभी देख पाएंगे?" लड़की बोली।
"डोंट वरी, ऐसा होगा। पहले तुम दुनिया देखोगी, फिर मैं, पर देखेंगे जरूर," समीर ने आश्वासन दिया।
“मुझे डर लग रहा है, समीर।”
“चिंता मत करो। सब ठीक होगा। ये बहुत बड़ा अस्पताल है और यहाँ अक्सर आई ट्रांसप्लांट ऑपरेशन होते हैं।”
“कुछ गलत हो गया तो।”
“कुछ नहीं होगा। और थोड़े ही दिनों में तुम सब कुछ देख सकोगी,” लड़का बोला।
“मुझे अब भी यही लगता है कि तुम्हें ये आँखें अपने चेहरे पर ट्रांसप्लांट करनी चाहिए थीं। इतने वर्षों में एक डोनर मिला तुम्हें, और वो भी तुमने अपने बजाय मेरा नाम से दाखिल करवाया,” लड़की बोली।
“मैंने तुम्हारा नाम इसलिए डाला क्योंकि अगला डोनर मिलने तक तुम मेरे साथ शादी के लिए लटकती रहती। और अब तुम देख सकोगी और हम शादी कर लेंगे। और बाद में दूसरे डोनर मिलने पर मेरा भी काम हो जाएगा,” लड़का बोला।
“वो तो भला हो निशित का, जो उसने मुझे बता दिया, वरना तुम तो मुझे कुछ बताने वाले नहीं थे।” निशित अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर ये वर्कशॉप चला रहा था।
“मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा। तुम फ़िक्र मत करो,” लड़के ने आखिरी बार उसे मिलते हुए कहा।
“वो तुमसे नहीं मिलना चाहती, समीर।” निशित ने गुस्से में कहा।
“मुझे पता है यार। मुझे तो बस ये जानना है, कि ऐसा क्या हुआ जो अचानक हर वादा टूट गया, और हर इरादा बदल गया?”
“मैंने उससे बात की पर उसने कुछ भी नहीं कहा। पर उसकी माँ ने बताया कि उनकी लड़की अपना फैसला ले चुकी है। और हम भी इस बात को जाने दें और उन्हें परेशान न करें,” निशित गुस्से से बोला।
“मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि वो ऐसा भी कर सकती है,” समीर बोला।
“मैं बताता हूँ कि उसने ना क्यों कहा तुम्हें। क्योंकि उसे अब पता है कि वो बहुत खूबसूरत है और तुम नहीं। वो खासी लंबी है और तुम एवरेज हो। अब तो वो अपने जैसा कोई ढूंढ रही होगी, तुम्हारे जैसा कोई काला बदसूरत अंधा नहीं,” निशित बोले जा रहा था।
ट्रांसप्लांट सही रहा और वह देख सकती थी, पर जैसा उसने सोचा था समीर वैसा नहीं निकला। जिस बात की उसे खुशी होनी चाहिए थी, वो अब उसके लिए गम भरी खबर बन गई। कुछ दिन बाद लड़की ने उससे मिलना बंद कर दिया और शादी की बात से साफ़ मुकर गई थी। “मुझे माफ कर दो, समीर,” आखिर में निशित ने कहा।
लड़की किताब के आखिरी पेज पर थी और आज दस साल बाद वो गुजरा वक्त जैसे एक बार फिर उसके सामने आकर खड़ा हुआ था। पिछले पांच सालों में उसने यह कहानी कम से कम 500 बार पढ़ चुकी थी और 1000 बार उस कंपनी को लेखक के बारे में पूछने के लिए फोन लगा चुकी थी। पर उसे यही जवाब मिलता कि उनके पास लेखक के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
अपने खयालों में उसने लड़के का जो चेहरा देखा था, जब हकीकत में वो चेहरा उसके सामने आया तो यह वह बर्दाश्त न कर सकी। उस चेहरे की काली रंगत और वो बंद अंदर दबी आँखें इस बात को मानने को तैयार नहीं थीं कि इस शख्स के साथ वो शादी करना चाहती है।
पर न ही वो सच बताने की हिम्मत कर सकी। बस बेरुखी से अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया और समीर से मिलना बंद कर दिया। फिर एक दिन उसे रास्ते में निशित मिल गया। उसने उसे बताया था कि समीर का किसी को कोई अता-पता नहीं है, वो कहाँ गया, कोई नहीं जानता, खुद निशित भी नहीं।
“क्या खूब लिखते हो तुम! तुम्हें तो राइटर होना चाहिए।”
समीर को कहीं अपनी बात उसे आज भी याद थी और उसकी अपनी कहानी एक किताब के रूप में उसके हाथ में थी。
“वो तो कभी अंधा था ही नहीं। वो वर्कशॉप हम दोनों मिलकर चला रहे थे। ये जो आँखें लेकर घूम रही हो, ये उसकी अपनी आँखें हैं。 तुम्हें ये इसलिए दी थीं ताकि तुम उससे शादी कर लो。 कमाल की बात है न, तुम उसे चाहती थीं क्योंकि तुम उसे देख नहीं पाती थीं。 और उसका बड़प्पन देखो कि वो तुम्हें अपने हिस्से की रोशनी देकर खुद अंधेरे में खो गया और एक बार भी जताया तक नहीं,” निशित की यह बात आज भी उसके कानों में गूंज रही थी।
कमरे में रखे रेडियो पर हल्की आवाज में गाना गूंज रहा था। वर्कशॉप खत्म हो गई थी, लेकिन वे दोनों हमेशा की तरह वहीं बैठे बातें कर रहे थे।
"तो तुमने मुझे बताया क्यों नहीं कि तुम बी.कॉम. तक पढ़े हो?" उसने थोड़ी नाराजगी से पूछा।
"तो क्या हुआ? मैं अभी बता रहा हूँ," समीर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"तो तुम्हारा एक्सीडेंट कब हुआ?" उसने फिर से पूछा।
"फाइनल ईयर में, एक्जाम से ठीक पहले। आँखों का जाना दुखद है, लेकिन इससे बड़ा दुख यह है कि मैं बी.कॉम. पास नहीं कर सका। अगर थोड़ा और समय होता, तो जिस डिग्री के लिए मैंने इतनी मेहनत की थी, वह मुझे फाइनल ईयर में नहीं छोड़नी पड़ती," वह हंसते हुए बोला।
"शट अप! यह मजेदार नहीं है..." उसने फिर से शिकायत की।
"ठीक है... मुझे माफ कर दो। अच्छा बताओ, आज वर्कशॉप में क्या सिखाया?" लड़के ने पूछा।
"हमें उस विशेष टाइपिंग मशीन पर टाइपिंग करना सिखाया जा रहा है जो अंधों के लिए बनाई गई है। लेकिन मैं सोचती हूँ कि अगर मैंने टाइपिंग सीख भी ली, तो मुझे कैसे पता चलेगा कि मैंने कोई गलती नहीं की है, क्योंकि मैं तो देख ही नहीं सकती," उसने कहा।
पिछले दो साल से, वे दोनों 'साइट फॉर ब्लाइंड्स' नाम की वर्कशॉप में जा रहे थे, जहाँ अंधे लोगों को तरह-तरह के कौशल सिखाए जाते थे।
"तो कुछ सुनाओ ना," लड़की बोली।
"हम्... तुझसे दूर जिधर जाऊं मैं... चलू दो कदम और ठहर जाऊं मैं... दुनिया खफा रहे तो परवाह नहीं कोई... तू खफा हो तो मर जाऊं मैं..." लड़का गाने लगा।
"क्या खूब लिखते हो तुम! तुम्हें तो लेखक होना चाहिए," उसने तारीफ की।
"सोचूंगा," वह बात टालते हुए बोला।
"जानती हो, अगर मेरी आँखें होतीं तो सबसे पहला काम मैं क्या करती?"
"क्या?" समीर ने उत्सुकता से पूछा।
"तुमसे शादी," लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा।
कमरे में थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा गई।
"हाँ, क्यों नहीं, हम शादी कर लेते हैं, हाल-फिलहाल में," लड़का गंभीर होते हुए बोला।
"समीर, हम दोनों देख पाने से मजबूर हैं। दो कमजोर लोग मिलकर एक मजबूत घर की नींव नहीं रख सकते," लड़की ने कहा।
"मतलब, अगर हम दोनों में से कोई भी देख सकता तो तुम मुझसे शादी कर लेती?" समीर ने पूछा।
"कोई भी नहीं, मैं। मैं उस शादी के ख्वाब को अपनी आँखों से सच होते हुए देखना चाहती हूँ," लड़की ने धीरे से कहा।
"तो ठीक है," समीर ने कहा, एक हल्की मुस्कान के साथ।
"क्या हमारे ख्वाब कभी सच होंगे समीर? क्या हम कभी देख पाएंगे?" लड़की बोली।
"डोंट वरी, ऐसा होगा। पहले तुम दुनिया देखोगी, फिर मैं, पर देखेंगे जरूर," समीर ने आश्वासन दिया।
“मुझे डर लग रहा है, समीर।”
“चिंता मत करो। सब ठीक होगा। ये बहुत बड़ा अस्पताल है और यहाँ अक्सर आई ट्रांसप्लांट ऑपरेशन होते हैं।”
“कुछ गलत हो गया तो।”
“कुछ नहीं होगा। और थोड़े ही दिनों में तुम सब कुछ देख सकोगी,” लड़का बोला।
“मुझे अब भी यही लगता है कि तुम्हें ये आँखें अपने चेहरे पर ट्रांसप्लांट करनी चाहिए थीं। इतने वर्षों में एक डोनर मिला तुम्हें, और वो भी तुमने अपने बजाय मेरा नाम से दाखिल करवाया,” लड़की बोली।
“मैंने तुम्हारा नाम इसलिए डाला क्योंकि अगला डोनर मिलने तक तुम मेरे साथ शादी के लिए लटकती रहती। और अब तुम देख सकोगी और हम शादी कर लेंगे। और बाद में दूसरे डोनर मिलने पर मेरा भी काम हो जाएगा,” लड़का बोला।
“वो तो भला हो निशित का, जो उसने मुझे बता दिया, वरना तुम तो मुझे कुछ बताने वाले नहीं थे।” निशित अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर ये वर्कशॉप चला रहा था।
“मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा। तुम फ़िक्र मत करो,” लड़के ने आखिरी बार उसे मिलते हुए कहा।
“वो तुमसे नहीं मिलना चाहती, समीर।” निशित ने गुस्से में कहा।
“मुझे पता है यार। मुझे तो बस ये जानना है, कि ऐसा क्या हुआ जो अचानक हर वादा टूट गया, और हर इरादा बदल गया?”
“मैंने उससे बात की पर उसने कुछ भी नहीं कहा। पर उसकी माँ ने बताया कि उनकी लड़की अपना फैसला ले चुकी है। और हम भी इस बात को जाने दें और उन्हें परेशान न करें,” निशित गुस्से से बोला।
“मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि वो ऐसा भी कर सकती है,” समीर बोला।
“मैं बताता हूँ कि उसने ना क्यों कहा तुम्हें। क्योंकि उसे अब पता है कि वो बहुत खूबसूरत है और तुम नहीं। वो खासी लंबी है और तुम एवरेज हो। अब तो वो अपने जैसा कोई ढूंढ रही होगी, तुम्हारे जैसा कोई काला बदसूरत अंधा नहीं,” निशित बोले जा रहा था।
ट्रांसप्लांट सही रहा और वह देख सकती थी, पर जैसा उसने सोचा था समीर वैसा नहीं निकला। जिस बात की उसे खुशी होनी चाहिए थी, वो अब उसके लिए गम भरी खबर बन गई। कुछ दिन बाद लड़की ने उससे मिलना बंद कर दिया और शादी की बात से साफ़ मुकर गई थी। “मुझे माफ कर दो, समीर,” आखिर में निशित ने कहा।
लड़की किताब के आखिरी पेज पर थी और आज दस साल बाद वो गुजरा वक्त जैसे एक बार फिर उसके सामने आकर खड़ा हुआ था। पिछले पांच सालों में उसने यह कहानी कम से कम 500 बार पढ़ चुकी थी और 1000 बार उस कंपनी को लेखक के बारे में पूछने के लिए फोन लगा चुकी थी। पर उसे यही जवाब मिलता कि उनके पास लेखक के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
अपने खयालों में उसने लड़के का जो चेहरा देखा था, जब हकीकत में वो चेहरा उसके सामने आया तो यह वह बर्दाश्त न कर सकी। उस चेहरे की काली रंगत और वो बंद अंदर दबी आँखें इस बात को मानने को तैयार नहीं थीं कि इस शख्स के साथ वो शादी करना चाहती है।
पर न ही वो सच बताने की हिम्मत कर सकी। बस बेरुखी से अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया और समीर से मिलना बंद कर दिया। फिर एक दिन उसे रास्ते में निशित मिल गया। उसने उसे बताया था कि समीर का किसी को कोई अता-पता नहीं है, वो कहाँ गया, कोई नहीं जानता, खुद निशित भी नहीं।
“क्या खूब लिखते हो तुम! तुम्हें तो राइटर होना चाहिए।”
समीर को कहीं अपनी बात उसे आज भी याद थी और उसकी अपनी कहानी एक किताब के रूप में उसके हाथ में थी。
“वो तो कभी अंधा था ही नहीं। वो वर्कशॉप हम दोनों मिलकर चला रहे थे। ये जो आँखें लेकर घूम रही हो, ये उसकी अपनी आँखें हैं。 तुम्हें ये इसलिए दी थीं ताकि तुम उससे शादी कर लो。 कमाल की बात है न, तुम उसे चाहती थीं क्योंकि तुम उसे देख नहीं पाती थीं。 और उसका बड़प्पन देखो कि वो तुम्हें अपने हिस्से की रोशनी देकर खुद अंधेरे में खो गया और एक बार भी जताया तक नहीं,” निशित की यह बात आज भी उसके कानों में गूंज रही थी।