by Guest » Sat Sep 21, 2024 7:13 pm
मेरी बहन कविता
दुनिया में कुछ बाते कब और कैसे हो जाती है ये कहना बहुत मुश्किल है. जिसके बारे में आपने कभी कल्पना भी नहीं की होती वैसी घटनाये आपके जीवन को पूरी तरह से बदल कर रख देती है. बात इधर उधर घुमाने की जगह सीधा कहानी पर आता हूँ. मैं मुंबई में रहता था और वही एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करने के साथ कंप्यूटर कोर्स भी करता था.
मेरी बड़ी बहन भी वही रहती थी रहती थी. उसका पति एक प्राइवेट फर्म में काम करता था. अच्छा कमाता था, और उसने एक छोटा सा एक बेडरूम वाला फ्लैट ले रखा था. उनका घर छोटा होने के कारण मैं वहां नहीं रह सकता था. मगर उनके घर के पास ही मैंने भी एक कमरा किराये पर ले लिया था.
मेरी बहन का नाम कविता था. शादी के 4 साल बाद भी उसे कोई बच्चा नहीं था और शायद होने की सम्भावना भी नहीं थी. क्योंकि उसका पति थोड़ा सनकी किस्म का था . उसके दिमाग में पता नहीं कहाँ से अमीर बन ने का भूत सवार हो गया था. हालाँकि ये हमारे परिवार की जरुरत थी. वो हर समय दुबई जाने के बारे में बाते करता रहता था. हालाँकि दीदी उसकी इन बातो से कभी-कभी चिढ जाती थी मगर फिर भी वो उसके विचारो से सहमत थी.
फिर एक दिन ऐसा आया जब वो सच में दुबई चला गया. वहाँ उसे एक फर्म में नौकरी मिल गई थी. तब मैंने किराया बचाने और दीदी की सुविधा के लिए अपना किराये का कमरा छोड़ कर अपने आप को दीदी के एक बेडरूम फ्लैट में शिफ्ट कर लिया. ड्राइंग रूम के एक कोने में रखा हुआ दीवान मेरा बिस्तर बना और मैं उसी पर सोने लगा . दीदी अपने बेडरूम में सोती थी. एक ओर साइड में रसोइ और दूसरी तरफ लैट्रीन और बाथरूम. रात में दीदी बेडरूम के दरवाजे को पूरी तरह बंद नहीं करती थी केवल सटा भर देती थी. अगर दरवाजा थोड़ा सा भी अलग होता था तो उसके कमरे की नाईट बल्ब की रौशनी मुझे ड्राइंग रूम में भी आती थी. दरवाजे के खुले होने के कारण मुझे रात को जब मुठ मारने की तलब लगती थी तब मुझे बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती थी. क्योंकि हमेशा डर लगा रहता था की पता नहीं दीदी कब बाहर आ जायेगी. लड़कियो के प्रति आकर्षण तो शुरू से था. आस-पास की लड़कियो और शादी शुदा औरतो को देख-देख कर मूठ मारा करता था.
अपनी बहन के साथ रहते हुए मुझे पता चला कि वह सचमुच एक खूबसूरत महिला थी। हालाँकि मेरी बहन भी शादी से पहले खूबसूरत थी, क्योंकि हम दोनों के बीच उम्र का छह-सात साल का फासला था, लेकिन मैं उस समय इतना परिपक्व नहीं था कि उसकी सुंदरता को पूरी तरह से समझ पाता या उसकी सराहना कर पाता। शादी के बाद मेरी बहन अलग रहने लगी. अब जबकि मैं युवा और बुद्धिमान हूं और हम फिर से एक साथ रहते हैं, मुझे उसे करीब से देखने का अवसर मिला है और मुझे वास्तव में एहसास हुआ है कि मेरी बहन की सुंदरता कितनी अद्वितीय है। शादी के बाद उनका फिगर थोड़ा बढ़ गया और सुडौल हो गया। वह पहले बहुत स्लिम हुआ करती थीं, लेकिन अब उनका फिगर भी काफी इलास्टिक वाला है। शायद ये उम्र का असर है, क्योंकि वो भी करीब 31 या 32 साल की हैं. उसका रंग गोरा है, उसका फिगर सम है, मोटापन और लोच से भरा हुआ है। उसके चलने का तरीका बहुत मनमोहक है, मुझे उसका वर्णन करने के लिए सही शब्द नहीं मिल रहे हैं, शायद इसे सेक्सी कहा जा सकता है।
चाहे वह टाइट सलवार कमीज पहने या साड़ी, उनका फिगर और भी खूबसूरत दिखता है। अगर वह टाइट सलवार कुर्ती पहनती है तो प्रभाव विशेष रूप से सेक्सी होता है। जब वो सलवार पहनती थी तो सबसे आकर्षक चीज़ उसकी टाँगें होती थीं। सलवार उसके पैरों के चारों ओर अच्छी तरह से फिट थी क्योंकि यहाँ तंग सलवाडोर पतली सूती से बना था और उसकी बहन की सलवा के साथ भी ऐसा ही था जो उसके पैरों में बिल्कुल फिट बैठता था। हालाँकि पोशाक थोड़ी लंबी है, लेकिन इसमें कमर पर एक आकर्षक कट है। जब वह घूमती थी तो उसकी कसी हुई सलवार के नीचे उसकी मांसल जांघें और नितंब साफ़ दिखाई देते थे। कविता दीदी की जांघें मजबूत और सुडौल हैं और उनके कूल्हे भी उत्कृष्ट अनुपात में हैं। उसके नितंब किसी तकिये की तरह मोटे, गोल और मांसल थे और जब वह चलती थी तो गतिशील रहते थे।
मैं कविता दीदी के साथ सीढ़ियाँ चढ़ता था। किसी तरह, जब भी वह तंग साड़ी या सलवार कमीज में सीढ़ियाँ चढ़ती है, तो उसके कपड़ों के हिलने से मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है। हो सकता है कि मुझे ऐसी महिलाएं विशेष पसंद हों जो मुझसे उम्र में बड़ी और मोटी हों। सीढ़ियाँ चढ़ते समय उसके गालों को हिलते हुए देखकर, मुझे अपने अंदर कुछ बदलाव महसूस हुआ। मैं अपनी आँखों पर काबू नहीं रख पाता और हमेशा अनजाने में उसकी तरफ देखता रहता हूँ। पीछे से देखते समय, चूँकि मेरा चेहरा मेरी बहन की ओर नहीं था और शायद मैं उसे एक मोटी जवान औरत के रूप में देखना शुरू कर रहा था, मैं उसके हिलते हुए कूल्हों को नोटिस किए बिना नहीं रह सका। मुझे अपनी बहन का फिगर देखकर ग्लानि और शर्मिंदगी महसूस होती थी। वह अक्सर छोटी कुर्ती यानी जांघ तक ऊंची कुर्ती और उसके ऊपर टाइट सलवार पहनती हैं। उस दिन मैं उससे नजरें नहीं मिला पा रहा था और अनजाने में मेरी नजरें हमेशा मेरी जांघों के ऊपर ही टिकी रहती थीं। हालाँकि यह मेरी बहन है, फिर भी किसे तंग सलवार के नीचे से झाँकती हुई सख्त जांघें पसंद नहीं होंगी? लेकिन उसकी वजह से मुझे भी असहजता महसूस होती थी और मैं उससे नजरें नहीं मिला पा रहा था।
दीदी की चुत्तर और जांघो में जो मांसलता आई थी वही उनकी चुचियों में भी देखने को मिलती थी. उनके मोटे चुत्तर और गांड के अनुपात में ही उनकी चुचियाँ भी थी. चुचियों के बारे में यही कह सकते है की इतने बड़े हो की आपकी हथेली में नहीं समाये पर इतने ज्यादा बड़े भी न हो की दो हाथो की हथेलियों से भी बाहर निकल जाये. कुल मिला कर ये कहे तो शरीर के अनुपात में हो. कुछ १८-१९ साल की लड़कीयों जो की देखने में खूबसूरत तो होंगी मगर उनकी चुचियाँ निम्बू या संतरे के आकार की होती है. जवान लड़कियोँ की चुचियों का आकार कम से कम बेल या नारियल के फल जितना तो होना ही चाहिए. निम्बू तो चौदह-पंद्रह साल की छोकरियों पर अच्छा लगता है. कई बार ध्यान से देखने पर पता चल पाता है की पुशअप ब्रा पहन कर फुला कर घूम रही है. इसी तरह कुछ की ऐसी ढीली और इतनी बड़ी-बड़ी होगी की देख कर मूड ख़राब हो जायेगा. लोगो का मुझे नहीं पता मगर मुझे तो एक साइज़ में ढली चूचियां ही अच्छी लगती है. शारीरिक अनुपात में ढली में हुई, ताकि ऐसा न लगे की पुरे बदन से भारी तो चूचियां है या फिर चूची की जगह पर सपाट छाती लिए घूम रही हो. सुन्दर मुखड़ा और नुकीली चुचियाँ ही लड़कियों को माल बनाती है.
एकदम तीर की तरह नुकीली चुचिया थी दीदी की. भरी-भरी, भारी और गुदाज़. गोल और गदराई हुई. साधारण सलवार कुर्ती में भी गजब की लगती थी. बिना चुन्नी के उनकी चूचियां ऐसे लगती जैसे किसी बड़े नारियल को दो भागो में काट कर उलट कर उनकी छाती से चिपका दिया गया है. घर में दीदी ज्यादातर साड़ी या सलवार कमीज़ में रहती थी . गर्मियों में वो आम तौर पर साड़ी पहनती थी . शायद इसका सबसे बड़ा कारण ये था की वो घर में अपनी साड़ी उतार कर, केवल पेटीकोट ब्लाउज में घूम सकती थी. ये एक तरह से उसके लिए नाईटी या फिर मैक्सी का काम करता था. अगर कही जाना होता था तो वो झट से एक पतली सूती साड़ी लपेट लेती थी. मेरी मौजूदगी से भी उसे कोई अंतर नहीं पड़ता था, केवल अपनी छाती पर एक पतली चुन्नी डाल लेती थी. पेटीकोट और ब्लाउज में रहने से उसे शायद गर्मी कम लगती थी. मेरी समझ से इसका कारण ये हो सकता है की नाईटी पहनने पर भी उसे नाईटी के अन्दर एक स्लिप और पेटीकोट तो पहनना ही पड़ता था, और अगर वो ऐसा नहीं करती तो उसकी ब्रा और पैन्टी दिखने लगते, जो की मेरी मौजूदगी के कारण वो नहीं चाहती थी. जबकि पेटीकोट जो की आम तौर पर मोटे सूती कपड़े का बना होता है एकदम ढीला ढाला और हवादार. कई बार रसोई में या बाथरूम में काम समय मैंने देखा था की वो अपने पेटीकोट को उठा कर कमर में खोस लेती थी जिससे घुटने तक उसकी गोरी गोरी टांगे नंगी हो जाती थी. दीदी की पिंडलियाँ भी मांसल और चिकनी थी. वो हमेशा एक पतला सा पायल पहने रहती थी. मैं कविता दीदी को इन्ही वस्त्रो में देखता रहता था मगर फिर भी उनके साथ एक सम्मान और इज्ज़त भरे रिश्ते की सीमाओं को लांघने के बारे में नहीं सोचता था. वो भी मुझे एक मासूम सा लड़का समझती थी और भले ही किसी भी अवस्था या कपड़े में हो , मेरे सामने आने में नहीं हिचकिचाती थी. ड्राइंग रूम में बैठे हुए रसोई में जहॉ वो खाना बनाती थी वो सब ड्राइंग रूम में रखे अल्मीराह में लगे आईने (mirror) में स्पष्ट दिखाई पड़ता था. कई बार दीदी पसीना पोछने के लिए लिए अपने पेटीकोट का इस्तेमाल करती थी. पेटीकोट के निचले भाग को ऊपर उठा कर चेहरे का पसीने के पोछते हुए मैंने कई बार मैंने आईने में देखा. पेटीकोट के निचले भाग को उठा कर जब वो थोड़ा तिरछा हो कर पसीना पोछती थी तो उनकी गोरी, बेदाग, मोटी जांघे दिख जाती थी.
मेरी बहन कविता
दुनिया में कुछ बाते कब और कैसे हो जाती है ये कहना बहुत मुश्किल है. जिसके बारे में आपने कभी कल्पना भी नहीं की होती वैसी घटनाये आपके जीवन को पूरी तरह से बदल कर रख देती है. बात इधर उधर घुमाने की जगह सीधा कहानी पर आता हूँ. मैं मुंबई में रहता था और वही एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करने के साथ कंप्यूटर कोर्स भी करता था.
मेरी बड़ी बहन भी वही रहती थी रहती थी. उसका पति एक प्राइवेट फर्म में काम करता था. अच्छा कमाता था, और उसने एक छोटा सा एक बेडरूम वाला फ्लैट ले रखा था. उनका घर छोटा होने के कारण मैं वहां नहीं रह सकता था. मगर उनके घर के पास ही मैंने भी एक कमरा किराये पर ले लिया था.
मेरी बहन का नाम कविता था. शादी के 4 साल बाद भी उसे कोई बच्चा नहीं था और शायद होने की सम्भावना भी नहीं थी. क्योंकि उसका पति थोड़ा सनकी किस्म का था . उसके दिमाग में पता नहीं कहाँ से अमीर बन ने का भूत सवार हो गया था. हालाँकि ये हमारे परिवार की जरुरत थी. वो हर समय दुबई जाने के बारे में बाते करता रहता था. हालाँकि दीदी उसकी इन बातो से कभी-कभी चिढ जाती थी मगर फिर भी वो उसके विचारो से सहमत थी.
फिर एक दिन ऐसा आया जब वो सच में दुबई चला गया. वहाँ उसे एक फर्म में नौकरी मिल गई थी. तब मैंने किराया बचाने और दीदी की सुविधा के लिए अपना किराये का कमरा छोड़ कर अपने आप को दीदी के एक बेडरूम फ्लैट में शिफ्ट कर लिया. ड्राइंग रूम के एक कोने में रखा हुआ दीवान मेरा बिस्तर बना और मैं उसी पर सोने लगा . दीदी अपने बेडरूम में सोती थी. एक ओर साइड में रसोइ और दूसरी तरफ लैट्रीन और बाथरूम. रात में दीदी बेडरूम के दरवाजे को पूरी तरह बंद नहीं करती थी केवल सटा भर देती थी. अगर दरवाजा थोड़ा सा भी अलग होता था तो उसके कमरे की नाईट बल्ब की रौशनी मुझे ड्राइंग रूम में भी आती थी. दरवाजे के खुले होने के कारण मुझे रात को जब मुठ मारने की तलब लगती थी तब मुझे बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती थी. क्योंकि हमेशा डर लगा रहता था की पता नहीं दीदी कब बाहर आ जायेगी. लड़कियो के प्रति आकर्षण तो शुरू से था. आस-पास की लड़कियो और शादी शुदा औरतो को देख-देख कर मूठ मारा करता था.
अपनी बहन के साथ रहते हुए मुझे पता चला कि वह सचमुच एक खूबसूरत महिला थी। हालाँकि मेरी बहन भी शादी से पहले खूबसूरत थी, क्योंकि हम दोनों के बीच उम्र का छह-सात साल का फासला था, लेकिन मैं उस समय इतना परिपक्व नहीं था कि उसकी सुंदरता को पूरी तरह से समझ पाता या उसकी सराहना कर पाता। शादी के बाद मेरी बहन अलग रहने लगी. अब जबकि मैं युवा और बुद्धिमान हूं और हम फिर से एक साथ रहते हैं, मुझे उसे करीब से देखने का अवसर मिला है और मुझे वास्तव में एहसास हुआ है कि मेरी बहन की सुंदरता कितनी अद्वितीय है। शादी के बाद उनका फिगर थोड़ा बढ़ गया और सुडौल हो गया। वह पहले बहुत स्लिम हुआ करती थीं, लेकिन अब उनका फिगर भी काफी इलास्टिक वाला है। शायद ये उम्र का असर है, क्योंकि वो भी करीब 31 या 32 साल की हैं. उसका रंग गोरा है, उसका फिगर सम है, मोटापन और लोच से भरा हुआ है। उसके चलने का तरीका बहुत मनमोहक है, मुझे उसका वर्णन करने के लिए सही शब्द नहीं मिल रहे हैं, शायद इसे सेक्सी कहा जा सकता है।
चाहे वह टाइट सलवार कमीज पहने या साड़ी, उनका फिगर और भी खूबसूरत दिखता है। अगर वह टाइट सलवार कुर्ती पहनती है तो प्रभाव विशेष रूप से सेक्सी होता है। जब वो सलवार पहनती थी तो सबसे आकर्षक चीज़ उसकी टाँगें होती थीं। सलवार उसके पैरों के चारों ओर अच्छी तरह से फिट थी क्योंकि यहाँ तंग सलवाडोर पतली सूती से बना था और उसकी बहन की सलवा के साथ भी ऐसा ही था जो उसके पैरों में बिल्कुल फिट बैठता था। हालाँकि पोशाक थोड़ी लंबी है, लेकिन इसमें कमर पर एक आकर्षक कट है। जब वह घूमती थी तो उसकी कसी हुई सलवार के नीचे उसकी मांसल जांघें और नितंब साफ़ दिखाई देते थे। कविता दीदी की जांघें मजबूत और सुडौल हैं और उनके कूल्हे भी उत्कृष्ट अनुपात में हैं। उसके नितंब किसी तकिये की तरह मोटे, गोल और मांसल थे और जब वह चलती थी तो गतिशील रहते थे।
मैं कविता दीदी के साथ सीढ़ियाँ चढ़ता था। किसी तरह, जब भी वह तंग साड़ी या सलवार कमीज में सीढ़ियाँ चढ़ती है, तो उसके कपड़ों के हिलने से मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है। हो सकता है कि मुझे ऐसी महिलाएं विशेष पसंद हों जो मुझसे उम्र में बड़ी और मोटी हों। सीढ़ियाँ चढ़ते समय उसके गालों को हिलते हुए देखकर, मुझे अपने अंदर कुछ बदलाव महसूस हुआ। मैं अपनी आँखों पर काबू नहीं रख पाता और हमेशा अनजाने में उसकी तरफ देखता रहता हूँ। पीछे से देखते समय, चूँकि मेरा चेहरा मेरी बहन की ओर नहीं था और शायद मैं उसे एक मोटी जवान औरत के रूप में देखना शुरू कर रहा था, मैं उसके हिलते हुए कूल्हों को नोटिस किए बिना नहीं रह सका। मुझे अपनी बहन का फिगर देखकर ग्लानि और शर्मिंदगी महसूस होती थी। वह अक्सर छोटी कुर्ती यानी जांघ तक ऊंची कुर्ती और उसके ऊपर टाइट सलवार पहनती हैं। उस दिन मैं उससे नजरें नहीं मिला पा रहा था और अनजाने में मेरी नजरें हमेशा मेरी जांघों के ऊपर ही टिकी रहती थीं। हालाँकि यह मेरी बहन है, फिर भी किसे तंग सलवार के नीचे से झाँकती हुई सख्त जांघें पसंद नहीं होंगी? लेकिन उसकी वजह से मुझे भी असहजता महसूस होती थी और मैं उससे नजरें नहीं मिला पा रहा था।
दीदी की चुत्तर और जांघो में जो मांसलता आई थी वही उनकी चुचियों में भी देखने को मिलती थी. उनके मोटे चुत्तर और गांड के अनुपात में ही उनकी चुचियाँ भी थी. चुचियों के बारे में यही कह सकते है की इतने बड़े हो की आपकी हथेली में नहीं समाये पर इतने ज्यादा बड़े भी न हो की दो हाथो की हथेलियों से भी बाहर निकल जाये. कुल मिला कर ये कहे तो शरीर के अनुपात में हो. कुछ १८-१९ साल की लड़कीयों जो की देखने में खूबसूरत तो होंगी मगर उनकी चुचियाँ निम्बू या संतरे के आकार की होती है. जवान लड़कियोँ की चुचियों का आकार कम से कम बेल या नारियल के फल जितना तो होना ही चाहिए. निम्बू तो चौदह-पंद्रह साल की छोकरियों पर अच्छा लगता है. कई बार ध्यान से देखने पर पता चल पाता है की पुशअप ब्रा पहन कर फुला कर घूम रही है. इसी तरह कुछ की ऐसी ढीली और इतनी बड़ी-बड़ी होगी की देख कर मूड ख़राब हो जायेगा. लोगो का मुझे नहीं पता मगर मुझे तो एक साइज़ में ढली चूचियां ही अच्छी लगती है. शारीरिक अनुपात में ढली में हुई, ताकि ऐसा न लगे की पुरे बदन से भारी तो चूचियां है या फिर चूची की जगह पर सपाट छाती लिए घूम रही हो. सुन्दर मुखड़ा और नुकीली चुचियाँ ही लड़कियों को माल बनाती है.
एकदम तीर की तरह नुकीली चुचिया थी दीदी की. भरी-भरी, भारी और गुदाज़. गोल और गदराई हुई. साधारण सलवार कुर्ती में भी गजब की लगती थी. बिना चुन्नी के उनकी चूचियां ऐसे लगती जैसे किसी बड़े नारियल को दो भागो में काट कर उलट कर उनकी छाती से चिपका दिया गया है. घर में दीदी ज्यादातर साड़ी या सलवार कमीज़ में रहती थी . गर्मियों में वो आम तौर पर साड़ी पहनती थी . शायद इसका सबसे बड़ा कारण ये था की वो घर में अपनी साड़ी उतार कर, केवल पेटीकोट ब्लाउज में घूम सकती थी. ये एक तरह से उसके लिए नाईटी या फिर मैक्सी का काम करता था. अगर कही जाना होता था तो वो झट से एक पतली सूती साड़ी लपेट लेती थी. मेरी मौजूदगी से भी उसे कोई अंतर नहीं पड़ता था, केवल अपनी छाती पर एक पतली चुन्नी डाल लेती थी. पेटीकोट और ब्लाउज में रहने से उसे शायद गर्मी कम लगती थी. मेरी समझ से इसका कारण ये हो सकता है की नाईटी पहनने पर भी उसे नाईटी के अन्दर एक स्लिप और पेटीकोट तो पहनना ही पड़ता था, और अगर वो ऐसा नहीं करती तो उसकी ब्रा और पैन्टी दिखने लगते, जो की मेरी मौजूदगी के कारण वो नहीं चाहती थी. जबकि पेटीकोट जो की आम तौर पर मोटे सूती कपड़े का बना होता है एकदम ढीला ढाला और हवादार. कई बार रसोई में या बाथरूम में काम समय मैंने देखा था की वो अपने पेटीकोट को उठा कर कमर में खोस लेती थी जिससे घुटने तक उसकी गोरी गोरी टांगे नंगी हो जाती थी. दीदी की पिंडलियाँ भी मांसल और चिकनी थी. वो हमेशा एक पतला सा पायल पहने रहती थी. मैं कविता दीदी को इन्ही वस्त्रो में देखता रहता था मगर फिर भी उनके साथ एक सम्मान और इज्ज़त भरे रिश्ते की सीमाओं को लांघने के बारे में नहीं सोचता था. वो भी मुझे एक मासूम सा लड़का समझती थी और भले ही किसी भी अवस्था या कपड़े में हो , मेरे सामने आने में नहीं हिचकिचाती थी. ड्राइंग रूम में बैठे हुए रसोई में जहॉ वो खाना बनाती थी वो सब ड्राइंग रूम में रखे अल्मीराह में लगे आईने (mirror) में स्पष्ट दिखाई पड़ता था. कई बार दीदी पसीना पोछने के लिए लिए अपने पेटीकोट का इस्तेमाल करती थी. पेटीकोट के निचले भाग को ऊपर उठा कर चेहरे का पसीने के पोछते हुए मैंने कई बार मैंने आईने में देखा. पेटीकोट के निचले भाग को उठा कर जब वो थोड़ा तिरछा हो कर पसीना पोछती थी तो उनकी गोरी, बेदाग, मोटी जांघे दिख जाती थी.