एक अनूठी लव स्टोरी

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एक अनूठी लव स्टोरी

by Guest » Wed Nov 13, 2024 2:37 am

उस लड़के से मिलने से पहले, मेरे जीवन में एक अजीब सा खालीपन था, जैसे कुछ खो सा गया हो। एक गहरी उदासी छुपी हुई थी, जिसे शायद मेरे अलावा कोई और नहीं समझ पाता था। मैं दिखावा करती थी कि खुश हूं, लेकिन अंदर से ऐसा नहीं था। बस एक नकली मुस्कान के साथ जिंदगी काट रही थी। मेरी स्वभाविक चंचलता की वजह से, मैं हमेशा घर और कॉलेज में लोगों से घिरी रहती थी। हालांकि, मैं बहुत बोलती थी, लेकिन मेरा जीवन बहुत अलग था। उस हिस्से को मैंने किसी से साझा नहीं किया था।

बाहर से हंसती-खिलखिलाती लड़की के बारे में किसी को यह अंदाजा नहीं था कि वो अंदर से कितनी अकेली और दर्द में डूबी हुई हो सकती है। मैंने अपने आसपास एक दीवार सी बना ली थी, जिसे कोई पार नहीं कर सकता था।

मुझे यह यकीन नहीं हो रहा था कि वह लड़का मेरी बनाई गई दीवार को तोड़ते हुए मेरे दिल और दिमाग में घुसता चला जा रहा था। पहले-पहल, उससे बातचीत करना सिर्फ औपचारिकता थी, क्योंकि हम दोनों सहपाठी थे। मुझे यह भी नहीं पता था कि वह मुझे पसंद करता है, मुझे उस तरीके से चाहता है। उसने कभी भी यह बात मुझसे जाहिर नहीं की थी। जब मुझे छोटी-सी तकलीफ भी होती, तो वह मुझसे कहीं ज्यादा परेशान हो जाता था।

कभी यकीन नहीं होता था कि कोई इतना गहरे से प्यार कर सकता है, लेकिन समय के साथ मुझे समझ में आया कि वह मेरा बहुत ख्याल रखता है, मुझे बहुत सोचता है। उसकी आंखों में प्यार था, पागलपन था। वह मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता था। उसने कभी मुझे यह नहीं कहा कि उसे मुझसे बातें करना अच्छा लगता है, या मेरे साथ वक्त बिताना पसंद है। लेकिन धीरे-धीरे, उसने बहुत ही चालाकी से मुझसे दोस्ती का हाथ बढ़ाया।

एक दिन, हम दोनों जल्दी कॉलेज पहुंच गए थे, और क्लास में कोई नहीं था। उस वक्त उसने मुझसे पूछा, "क्या मैं तुम्हारा हाथ पकड़ सकता हूँ?" पहले तो मुझे समझ में नहीं आया कि वह ऐसा क्यों पूछ रहा है। मुझे थोड़ा अजीब भी लगा, लेकिन मैं जानती थी कि वह कोई गलत बात नहीं करेगा। उसकी आंखों में जो सच्चाई थी, वह मुझे साफ़-साफ़ दिख रही थी। उसने इतनी ईमानदारी से मेरा हाथ मांगा कि मैं उसे मना नहीं कर पाई।

मैंने उसे अपना हाथ दे दिया। उसने मेरा हाथ बड़े प्यार से पकड़ा और कहा, "क्या तुम मेरी दोस्त बनोगी? मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो। मैं तुममें एक अच्छा इंसान देखता हूँ, और मैं चाहता हूँ कि मैं जिंदगी भर तुम्हारा दोस्त बनकर तुम्हारे साथ रहूं।"

उसकी बातों में इतनी सच्चाई थी कि मैं उसे न नहीं कर पाई। बस, एक हल्की सी मुस्कान के साथ मैंने हां कह दिया। वह खुशी से झूमते हुए चला गया। मैं पूरे दिन उसकी बातों को याद करके हंसती रही, और यह सोचते हुए कि कैसे वह डरते-डरते मेरा हाथ पकड़ रहा था, मुझे हंसी आ रही थी। मुझे उसकी कांपती हुई उंगलियां महसूस हो रही थीं। वह एक सच्चे दोस्त की तरह मेरे पास आया था, और आज भी उस पल को याद कर के मैं हंसती रहती हूं।

मेरे आस-पास रहने वाले लोग ये देख कर समझ गए थे कि जरुर कोई बात है. इस लड़की को कुछ तो होने लगा है.
अब हम दोनो दोस्त बन गए थे और उसने किसी भी वक्त फोन पर बात करने की इजाजत मांग ली थी.
अब उससे बात करना मुझे भी अच्छा लगने लगा था, मेरे अंदर क्या चल रहा था मुझे समझ में नहीं आ रहा था.
क्यों मैं उसके फोन का इंतज़ार करने लगी थी ? क्यों मैं उसकी ओर खिंची चली जा रही थी ? क्यों अब हर पल मेरा दिल उसका साथ चाहता था, न जाने क्यों मैं अब खुली आँखों से भी उसी के सपने देखने लगी थी. क्यों मैं अब दिन-रात उसी से बातें करना चाहती थी. अब उससे अपनी बातें share करना मुझे अच्छा लगने लगा था. जब भी मैं उदास होती किसी को पता चले ना चले उसे पता चल जाता था, चाहे वह मेरे सामने हो या न हो. और वह मेरी उदासी को दूर करने का हर संभव प्रयास करता था. मुझे खुद पर गर्व होने लगा था.
एक दिन उसने मुझसे "I Love You" कहा, मुझे वक्त लगा… लेकिन मैंने भी अपने प्यार का इज़हार कर दिया। मुझे भी अपनी ज़िंदगी में प्यार का इंतजार था। मैं भी प्यार को हर पल जीना चाहती थी। आगे क्या होगा, इसकी चिंता न उसे थी, न मुझे। हम दोनों का सारा समय एक-दूसरे के साथ बीतने लगा। हम दोनों एक-दूसरे का साथ पाकर मानो पूरी दुनिया से कट गए थे।

मैं कह सकती हूँ, उसके साथ बिताए गए एक-एक पल मुझे हमेशा याद रहेंगे। मैं कितनी खूबसूरत थी, ये उसने हीं बताया था। मेरी जुल्फें उसे बहुत खूबसूरत लगती थी। मेरी कमियाँ भी उसे मेरी खूबी लगती थी।

मेरे हर जन्मदिन पर मुझसे ज्यादा खुश होना, मेरे ऊपर हजारों रुपए मना करने के बावजूद खर्च कर देना, वह दीवाना था मेरा। उसने भी मुझे अपना दीवाना बना लिया था। बाइक पर अक्सर घूमने निकल जाना, कॉलेज बंक करके फिल्म देखने जाना, ये सब हमें अच्छा लगने लगा था। उसकी पूरी दुनिया बन गई थी मैं, मेरी पूजा करता था वह।

मेरे लिए किसी से पंगा लेने से पहले बिल्कुल नहीं सोचता था वह। दिन तेजी से बीतने लगे, हम दोनों दुनिया को भूल चुके थे। प्यार के उस दौर ने हम दोनों को भीतर से बदल दिया था। हमने प्यार की ढ़ेरों कसमें खाई, और ढ़ेरों वादे किए। हम दोनों प्यार के इस दौर को जी भर कर जी लेना चाहते थे।

वक्त ने करवट लिया, मेरे पिताजी ने 20-21 साल की कम उम्र में हीं मेरी शादी पक्की कर दी। मुझे अब उसे या अपने परिवार को चुनना था। मैंने कभी सोचा हीं नहीं था कि जल्द हीं मेरे सामने यह मजबूरी आ जाएगी। अंदर से मेरा हाल भी बेहाल था, लेकिन वह मुझसे ज्यादा बेहाल था।

वह किसी भी हद तक जाने को तैयार था, मेरा साथ पाने के लिए। लेकिन मैं जानती थी, कि अगर मैं घर से भाग जाती हूँ तो मेरे घर वालों का जीना मुश्किल हो जाएगा। कड़े मन से मैंने उसके साथ जाने से इंकार कर दिया। वह हर दिन सैंकड़ों बार कोशिश करता कि मेरे फैसले को बदल पाए, लेकिन मैं नहीं मानी।

मेरी शादी हो गई, हर कोई खुश था… उस लड़के के सिवा। आखिर वह खुश होता भी तो कैसे, उसने मुझे अपनी पूरी दुनिया जो बना लिया था। गलती मेरी हीं थी, मुझे उसे पहले हीं रोक देना चाहिए था… जब वह अपना सब कुछ मुझ पर लूटा रहा था। मुझे उसे दुःख देने का कोई हक नहीं था।

अपनी शादी के बहुत महीनों के बाद मेरी उससे मुलाकात हुई। उसने अपना हाल बेहाल कर लिया था। ऐसा लग रहा था मानो उसमें कोई जान हीं नहीं है, हंसना तो वह भूल हीं गया था। उसने कहा कि वह मुझसे मिलने से पहले भी अकेला था और मेरे जाने के बाद फिर अकेला है।

वह कहता है, "प्यार की लड़ाई तो वह हार गया है, पर प्यार की जंग जरूर जीतेगा वह।"
वह कहता है, "तुम भले मेरा साथ न दे सको, मेरा प्यार तो मेरे साथ है न।"
मेरे प्यार के सहारे उसने जिंदगी में आगे बढ़ने की ठानी है।

उस दिन उसने कहा कि उसका प्यार सच्चा है, इसलिए उसका प्यार कभी उसकी कमजोरी नहीं बनेगा। मुझे अपनी गलती का एहसास है। क्योंकि मेरा प्यार मुझे ज्यादा दुखी है, मैंने उसकी जिंदगी को बर्बाद कर दिया है।

मैं उस दीवाने के प्यार को सलाम करती हूँ, जिसके पास न मेरा तन है, न मेरा समय, न मेरा जीवन, पर अब भी वह मुझसे प्यार करता है।

पर उस दिन उसने मुझसे झूठ बोला था, शायद वह बुरी तरह टूट चुका था. जबकि उसने खुद को बहुत बहादुर दिखाने की कोशिश की थी. मुझे लगा था कि सबकुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन सबकुछ बुरा होता चला गया. वह लोगों से दूर होता चला गया था, और लोग उससे दूर होते चले गए थे. बुरे लोगों से दोस्ती कर ली थी उसने. वह शराब, सिगरेट और ड्रग्स का आदि हो गया था. वह बुरी तरह डिप्रेशन का शिकार हो गया था. और अंत में एक दिन उसने आत्महत्या कर ली. ये था इस कहानी का अंत. मैं न तो जीते जी उसके साथ रह पाई न उसके अंतिम समय में मैं उसका साथ निभा पाई. मैं हमेशा खुद को गुनाहगार रहूंगी, उस लड़के की जिसने मुझे इतना प्यार किया, जितना कोई नहीं

कर सकता है. शायद मैं उसकी जिंदगी में नहीं आती, तो आज सबकुछ अच्छा होता. शायद वो आज जिंदा और खुश होता.

हम उस दौर में जी रहे हैं हम जहाँ दुश्मन तो आसानी से पहचाने जाते हैं.
लेकिन सच्चे या झूठे प्यार को पहचानना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है.

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