by aries » Wed Oct 02, 2024 2:19 am
गर्मियों की दोपहर थी। ऑफिस की भीड़-भाड़ के बीच मेरी आंखें उस नई लड़की पर जा टिकीं, जो हाल ही में मेरी सीट के पास काम करने आई थी। उसका नाम तक नहीं पता था, लेकिन उसके चेहरे की मासूमियत ने मेरे दिल को छू लिया। उम्र में मुझसे कुछ छोटी लग रही थी, लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। कभी-कभी हमारी नजरें मिल जातीं, और मैं घबरा कर अपनी नजरें कंप्यूटर स्क्रीन पर जमा लेता। उसे पता न चले कि मैं उसे देख रहा हूं, ऐसा सोचकर मैं रोज़ ऐसा ही करता रहा। एक हफ्ता बीत गया, लेकिन मैंने उसे अब तक 'हाय' तक नहीं कहा था।
आखिरकार सोमवार की सुबह मैंने हिम्मत जुटाई और धीरे से उससे कहा, "हाय।" उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हैलो, मेरा नाम मृदुला राजपूत है। आपका?"
"मैं वेद हूं, और जावा में काम करता हूं। आप?"
"मैं फ्रेशर हूं," उसने जवाब दिया। उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास झलक रहा था। फिर अचानक मैंने पूछ लिया, "क्या आप मेरे साथ चाय पीना पसंद करेंगी?" मेरे खुद के लिए ये बड़ा सवाल था, क्योंकि मैंने पहले कभी किसी लड़की से ऐसे चाय के लिए नहीं पूछा था।
वह मुस्कुराई और बेझिझक बोली, "क्यों नहीं, चलिए पीते हैं।"
हम ऑफिस की कैंटीन में बैठ गए। चाय की चुस्कियों के बीच हमारी बातें होने लगीं। लोग हमें देख रहे थे, और मुझे थोड़ी झिझक महसूस हो रही थी। ऐसा लगा जैसे सबकी नजरें हम पर थीं। वह समझदार थी, उसने मेरी उलझन को भांप लिया और बोली, "हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं, फिर आप परेशान क्यों हैं?" उसकी यह बात मुझे सुकून दे गई।
धीरे-धीरे हमारी मुलाकातें बढ़ने लगीं। मैं अब पहले जैसा नहीं रहा। उसके साथ वक्त बिताना अच्छा लगने लगा। हम कभी-कभी ऑफिस के बाद रेस्टोरेंट जाते, कभी सिनेमा देखने। उसके साथ रहकर मैंने खुद को बदलते देखा। उसकी खुशबू मेरी जिंदगी में घुलने लगी थी। मैं अब पहले से ज्यादा सोच-समझकर कपड़े पहनने लगा था। दोस्तों ने मजाक में उसका नाम लेकर चुटकी लेना शुरू कर दिया था। जब लोग उसे घूरते, तो मुझे अजीब लगता, लेकिन जब उसकी तारीफ सुनता, तो मुझे खुद पर गर्व महसूस होता।
एक दिन मेरा दोस्त प्रकाश अपनी बहन को परीक्षा दिलाने आया, और मैं उसके साथ गया। वहां मैंने एक लड़के को सिगरेट जलाने के लिए माचिस दी, और हम पेड़ के नीचे बैठकर बातें करने लगे। उसका नाम राहुल था। बातों-बातों में पता चला कि मृदुला उसकी दोस्त थी। मेरे दिल की धड़कनें अचानक तेज हो गईं।
राहुल ने मुझसे पूछा, "तुम मृदुला को कैसे जानते हो?"
मैंने उसे चौंकाते हुए कहा, "वो मेरी दोस्त है, और हम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं।"
राहुल थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला, "वो कभी मेरी भी करीबी दोस्त थी। अब मुझे नजरअंदाज करती है। पहले हर वक्त साथ रहती थी, अब बस नाम मात्र की मुलाकातें होती हैं।"
उसकी बातें सुनकर मेरे दिल में हलचल मच गई। मैं चुपचाप वहां से निकल आया। घर आकर पूरी रात जागता रहा। आंसुओं में डूबा मेरा दिल सवाल करता रहा कि मृदुला ने मुझसे कुछ छिपाया क्यों? क्या वह मुझसे प्यार करती थी या ये सिर्फ एक आकर्षण था?
मैंने खुद से लड़ते-झगड़ते हुए उससे दूर रहने का फैसला कर लिया। मृदुला ने कभी मुझसे प्यार का इज़हार नहीं किया था, लेकिन मेरा दिल उसे दोष देने से नहीं रुक रहा था। उधर, मेरे दोस्त प्रकाश और राहुल की बहन के बीच एक नई प्रेम कहानी शुरू हो रही थी, और मैं अपने अंतर्द्वंद्व में उलझा हुआ था।
कहानी का अंत शायद कुछ और हो सकता था, लेकिन मैं बस इतना कह सकता हूं:
"हां, मैं ये जानता हूँ कि वो बेवफा तो नहीं,
पर शायद मैं इश्क़ को ठीक से पहचानता नहीं।"
गर्मियों की दोपहर थी। ऑफिस की भीड़-भाड़ के बीच मेरी आंखें उस नई लड़की पर जा टिकीं, जो हाल ही में मेरी सीट के पास काम करने आई थी। उसका नाम तक नहीं पता था, लेकिन उसके चेहरे की मासूमियत ने मेरे दिल को छू लिया। उम्र में मुझसे कुछ छोटी लग रही थी, लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। कभी-कभी हमारी नजरें मिल जातीं, और मैं घबरा कर अपनी नजरें कंप्यूटर स्क्रीन पर जमा लेता। उसे पता न चले कि मैं उसे देख रहा हूं, ऐसा सोचकर मैं रोज़ ऐसा ही करता रहा। एक हफ्ता बीत गया, लेकिन मैंने उसे अब तक 'हाय' तक नहीं कहा था।
आखिरकार सोमवार की सुबह मैंने हिम्मत जुटाई और धीरे से उससे कहा, "हाय।" उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हैलो, मेरा नाम मृदुला राजपूत है। आपका?"
"मैं वेद हूं, और जावा में काम करता हूं। आप?"
"मैं फ्रेशर हूं," उसने जवाब दिया। उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास झलक रहा था। फिर अचानक मैंने पूछ लिया, "क्या आप मेरे साथ चाय पीना पसंद करेंगी?" मेरे खुद के लिए ये बड़ा सवाल था, क्योंकि मैंने पहले कभी किसी लड़की से ऐसे चाय के लिए नहीं पूछा था।
वह मुस्कुराई और बेझिझक बोली, "क्यों नहीं, चलिए पीते हैं।"
हम ऑफिस की कैंटीन में बैठ गए। चाय की चुस्कियों के बीच हमारी बातें होने लगीं। लोग हमें देख रहे थे, और मुझे थोड़ी झिझक महसूस हो रही थी। ऐसा लगा जैसे सबकी नजरें हम पर थीं। वह समझदार थी, उसने मेरी उलझन को भांप लिया और बोली, "हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं, फिर आप परेशान क्यों हैं?" उसकी यह बात मुझे सुकून दे गई।
धीरे-धीरे हमारी मुलाकातें बढ़ने लगीं। मैं अब पहले जैसा नहीं रहा। उसके साथ वक्त बिताना अच्छा लगने लगा। हम कभी-कभी ऑफिस के बाद रेस्टोरेंट जाते, कभी सिनेमा देखने। उसके साथ रहकर मैंने खुद को बदलते देखा। उसकी खुशबू मेरी जिंदगी में घुलने लगी थी। मैं अब पहले से ज्यादा सोच-समझकर कपड़े पहनने लगा था। दोस्तों ने मजाक में उसका नाम लेकर चुटकी लेना शुरू कर दिया था। जब लोग उसे घूरते, तो मुझे अजीब लगता, लेकिन जब उसकी तारीफ सुनता, तो मुझे खुद पर गर्व महसूस होता।
एक दिन मेरा दोस्त प्रकाश अपनी बहन को परीक्षा दिलाने आया, और मैं उसके साथ गया। वहां मैंने एक लड़के को सिगरेट जलाने के लिए माचिस दी, और हम पेड़ के नीचे बैठकर बातें करने लगे। उसका नाम राहुल था। बातों-बातों में पता चला कि मृदुला उसकी दोस्त थी। मेरे दिल की धड़कनें अचानक तेज हो गईं।
राहुल ने मुझसे पूछा, "तुम मृदुला को कैसे जानते हो?"
मैंने उसे चौंकाते हुए कहा, "वो मेरी दोस्त है, और हम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं।"
राहुल थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला, "वो कभी मेरी भी करीबी दोस्त थी। अब मुझे नजरअंदाज करती है। पहले हर वक्त साथ रहती थी, अब बस नाम मात्र की मुलाकातें होती हैं।"
उसकी बातें सुनकर मेरे दिल में हलचल मच गई। मैं चुपचाप वहां से निकल आया। घर आकर पूरी रात जागता रहा। आंसुओं में डूबा मेरा दिल सवाल करता रहा कि मृदुला ने मुझसे कुछ छिपाया क्यों? क्या वह मुझसे प्यार करती थी या ये सिर्फ एक आकर्षण था?
मैंने खुद से लड़ते-झगड़ते हुए उससे दूर रहने का फैसला कर लिया। मृदुला ने कभी मुझसे प्यार का इज़हार नहीं किया था, लेकिन मेरा दिल उसे दोष देने से नहीं रुक रहा था। उधर, मेरे दोस्त प्रकाश और राहुल की बहन के बीच एक नई प्रेम कहानी शुरू हो रही थी, और मैं अपने अंतर्द्वंद्व में उलझा हुआ था।
कहानी का अंत शायद कुछ और हो सकता था, लेकिन मैं बस इतना कह सकता हूं:
"हां, मैं ये जानता हूँ कि वो बेवफा तो नहीं,
पर शायद मैं इश्क़ को ठीक से पहचानता नहीं।"