by aries » Mon Dec 30, 2024 2:33 am
मैं सपना को पिछले तीन साल से जानता था। 12वीं कक्षा में हम दोनों एक ही क्लास में थे, और उसके बाद हमने अलग-अलग कॉलेज जॉइन कर लिए थे। एक बार क्लास में उसने मुझसे एक शर्त लगाई थी, जिसके हारने पर उसे मुझे किस करना था। यह बात मैंने मजाक में कही थी और मुझे पता था कि वह मुझे किस नहीं करेगी, इसलिए जब वह शर्त हार गई, तो मैंने उसे मजाक में छेड़ा कि "मैं अभी भी अपने किस का इंतजार कर रहा हूं।"
अब इस बात को तीन साल हो चुके थे। हम दोनों के कॉलेज बदल गए थे और मिलने-जुलने का सिलसिला बहुत कम हो गया था। कुछ दिन पहले उसने मुझे फोन किया था और बताया था कि वह और उसका परिवार दूसरे शहर में शिफ्ट हो रहे हैं, और वह चाहती थी कि हम कुछ समय साथ में बिताएं। हम दोनों शहर के एक बड़े पार्क में बैठे थे।
दिन का लगभग 12 बज रहा था और पार्क में कोई नहीं था। हम एक कोने में, कुछ पेड़ों की आड़ में, चुपचाप बैठे हुए थे।
मैं हमेशा से जानता था कि उसे मुझसे स्कूल के दिनों में प्यार था, और उसने मुझे खुद बताया था कि वह कभी भी यह नहीं कह पाई। उसके बाद कॉलेज में उसकी एक और लड़के से दोस्ती हो गई थी, और हाल ही में उसका ब्रेकअप हुआ था।
फोन पर उसने मुझसे बताया था कि अगले हफ्ते वह दूसरे शहर शिफ्ट हो जाएगी, और यह बहुत संभव है कि यह हमारी आखिरी मुलाकात हो। हंसते हुए उसने यह भी कहा था कि शायद आज मुझे मेरा किस भी मिल जाए, और फिर हम दोनों उस बात पर हंस पड़े थे।
स्कूल के दिनो में हम दोनो बहुत क्लोज़ फ्रेंड्स हुआ करते थे इसलिए पार्क में मैं आराम से नीचे घास पर लेटा हुआ था और सर को उसकी टाँग पर रखा था. वो मेरे बालों में हाथ फिरा रही थी और हम गुज़रे दिनो और अपनी दोस्ती के किस्से एक दूसरे से डिसकस कर रहे थे.
नीचे लेटे हुए मुँह पर पेड़ के पत्तो के बीच से धूप पड़ने लगी तो मैं उठकर बैठ गया.
"क्या हुआ" मुझे उठता देख वो बोली "लेटे रहो"
"धूप पड़ रही है मुँह पर" मैने कहा और पेड़ से टेक लगा कर बैठ गया. और फिर मुझे जाने क्या सूझी के मैने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और उसे अपनी टाँगो के बीच कर लिया.
3 साल पहले हम दोनो ही एक दूसरे को बेहद पसंद करते थे और दोनो के दिल में दोस्ती के अलावा और भी कई बातें थी जो कभी सामने आ नही पाई थी. ये शायद उसकी का नतीजा था के जब मैने उसे यूँ अपने करीब खींचा तो वो भी चुप चाप सिमट कर मेरी बाहों में आ गयी और मेरी टाँगो के बीच अपनी कमर
मेरी छाती पर टीका कर आराम से बैठ गयी.
कुच्छ पल तक हम दोनो यूँ ही खामोश बैठे रहे. उस एक पल में यूँ करीब होकर बैठ ने से हमने पहली बार दोस्ती से आगे कदम उठाया था इसलिए शायद झिझक रहे थे के अब क्या कहें?
और फिर उसने वो किया जिसकी मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नही थी. आगे बढ़कर उसने मेरा गाल चूम लिया और धीरे से मेरे कान में बोली
"आइ लव यू"
मैं एक पल के लिए उसकी इस हरकत पर चौंक सा पड़ा. वो ऐसा करेगी इसका मुझे दूर दूर तक कोई अंदेशा नही था. मैने गर्दन घूमकर उसकी आँखों में आँखें डालकर देखा और आगे बढ़कर अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए.
वो एक छ्होटा सा किस था. हमारे होंठ आपस में मिले और कुच्छ पल साथ रहकर अलग हो गये.
पर जैसे उस एक किस ने चिंगारी का काम किया. कुच्छ पल बाद ही हमारे होंठ फिर आपस में मिले और इस बार जैसे एक दूसरे से चिपक कर रह गये. मैं उसके दोनो होंठों को अपने होंठों में पकड़ कर चूस रहा था और वो भी मेरा बराबर का साथ देते हुए पलटकर मेरे होंठ चूसने लगी.
"ओह साहिल !!!!"
मेरे होंठ थोड़ी देर बाद उसके होंठों से हटे और फिर उसके गाल और गर्दन को चूमने लगे. उसका हाथ मेरे बालों पर आ गया और पल भर को भी उसने मुझे रोकने की कोशिश नही की. मैं बारी बारी से कभी उसकी गर्दन, कभी गाल और कभी होंठों को चूमता रहा.
"साहिल कोई देख लेगा" कुच्छ पल बाद वो बोली
"कोई नही देखेगा. हम पेड़ की आड़ में हैं और इस वक़्त यहाँ कोई है भी नही" कहते हुए मैने अपना चूमने का काम जारी रखा.
थोड़ी देर के लिए वो फिर मेरा साथ देने लगी.
"साहिल हटो. मेरा पूरा मुँह गीला कर दिया तुमने"
"थोड़ा आयेज बढ़ जाऊं?"जवाब मैने पुछा
"क्या?" उसको शायद मेरी बात समझ नही आई पर मैने जवाब का इंतेज़ार किए बिना अपना एक हाथ उसकी एक छाती पर रख दिया.
"ओह साहिल" उसने मेरे जिस्म को अपने हाथों में ऐसे जाकड़ लिया जैसे करेंट का झटका लगा गो "मैं जानती थी तुम यही करोगे. तुम सब एक जैसे होते हो"
पर उसने उस वक़्त मेरा हाथ हटाने की कोई कोशिश नही की. मैं धीरे धीरे उसके होंठ चूमता हुआ अपने हाथ से उसकी चूचिया कमीज़ के उपेर से ही सहलाने लगा.
"बस अब हटो" उसने मेरा हाथ थोड़ी देर बाद अपनी छाती से हटा दिया.
पर मेरे अंदर वासना का तूफान जैसे जाग उठा था. मैं थोड़ी देर के लिए तो अलग हुआ पर कुच्छ पल बाद ही फिर उसके होंठ चूमने लगा और इस बार बिना झिझके अपना हाथ सीधा उसकी छाती पर रख दिया.
मेरे हाथ को अपने सीने पर महसूस करते ही उसने एक गहरी साँस ली और फ़ौरन हटा दिया.
मैने अगले ही पल फिर अपना हाथ उसके सीने पर रख दिया और वो फिर ऐसे काँपी जैसे बिजली का झटका लगा हो. उसने फिर मेरा हाथ हटाया और मैने फिर उसकी एक छाती पकड़ ली.
"बस करो साहिल. कोई देख लेगा"
"कोई नही है. अकेले हैं इस वक़्त हम यहाँ" मैने कहा और इस बार मैं और आगे बढ़ा.
मेरा हाथ इस बार उसके पेट पर आया और उसकी कमीज़ के एक छ्होर से होता हुआ अंदर जाकर सीधा उसके नंगे पेट को च्छू गया.
"ओह्ह्ह्ह साहिल" मेरा हाथ को अपने नंगे जिस्म पर महसूस करते ही उसने फिर एक गहरी साँस ली और कमीज़ के उपेर से मेरे हाथ को पकड़ लिया, जैसे कोशिश कर रही हो के मेरा हाथ उसके जिस्म के किसी और हिस्से को ना च्छुने पाए.
"हाथ हटाओ" मैने उससे मेरा हाथ छ्चोड़ने को कहा.
"सूट बहुत टाइट है साहिल"
"हाथ हटाओ ना प्लीज़"
"कमीज़ बहुत टाइट है मेरी"
"हाथ हटाओ सपना"
और उसने अपना हाथ हटा लिया और मेरा हाथ उसकी कमीज़ के अंदर उसके जिस्म को महसूस करने के लिए आज़ाद हो गया.
उसके चिकने पेट और पीठ पर फिसलता हुआ मेरा हाथ सीधा ब्रा के उपेर से उसकी एक चूची पर आ टीका.
उसकी चूचियाँ ना तो बहुत बड़ी थी और ना ही बहुत छ्होटी. जिस तरह से उसकी एक चूची पूरी मेरी एक मुट्ठी में समा गयी, उससे मैने उसके ब्रा का साइज़ 32 होने का अंदाज़ा लगाया.
"साहिल क्या कर रहे हो तुम" उसने ठंडी आह भरी पर मुझे रोकने या मेरा हाथ हटाने की कोई कोशिश नही की.
कभी मैं कमीज़ के अंदर हाथ डाले ब्रा के उपेर से उसकी चूचियाँ सहलाता, कभी उसके पेट पर हाथ फिराता तो कभी हाथ थोडा अंदर करके उसके नंगी पीठ को छुता.
"ओह साहिल !!!!" वो बराबर लंबी साँसें लेते हुए आहें भर रही थी और मुझे लिपटी जा रही थी. मेरे होंठ अब भी कभी उसके गालों पर होते तो कभी उसके होंठ और गले पर.
और इसी बीच मेरे हाथ एक बार फिर कमीज़ के अंदर उसके पेट को सहलाता उसकी चूची पर आया पर इस बार ब्रा के उपेर से आने के बजाय सीधा ब्रा के अंदर घुसा और उसकी नंगी चूची मेरे एक हाथ में आ गयी.
"साहिल !!!!!!" वो मेरी बाहों में ऐसे मचल रही थी पानी के बिना मच्चली.
मैने बारी बारी ब्रा के अंदर हाथ घुसा कर उसकी दोनो चूचियो को महसूस किया, सहलाया. मेरे खुद के जिस्म में जैसे एक आग सी लगी हुई थी और मुझे खुद को समझ नही आ रहा था के मैं कैसे इस पार्क में उस आग को ठंडी करूँ.
"चलो कहीं और चलते हैं" उसकी चूचियाँ सहलाते हुए मैने कहा
"कहाँ?" वो आहें भरती हुई बोली
मैने चारों तरफ देखा. हमसे थोड़ी देर एक फुलवारी लगी हुई थी और हम उसके पिछे आराम से छिप कर बैठ सकते थे.
"उधर चलते हैं" मैने इशारे से कहा
"नही मुझे नही जाना" उसने फ़ौरन मना कर दिया
"चलो ना"
"नही"
उसने फिर मना किया और इस बार वो संभाल कर बैठ गयी. मेरा हाथ उसने अपनी कमीज़ के अंदर से निकाल दिया और अपना दुपट्टा सही करने लगी.
"उधर एक फॅमिली आकर बैठी है. वो देख लेंगे हमें. अब प्लीज़ कुच्छ मत करो"
उसने पार्क के एक तरफ इशारा किया जहाँ एक परिवार चादर बिच्छा कर बैठने की तैय्यारि कर रहा था. पर उनका ध्यान हमारी तरफ बिल्कुल नही था और बहुत मुश्किल था के उनकी नज़र हम पर पड़ती या वो हमें नोटीस करते.
"नही देखेंगे" मैने फिर उसे अपनी तरफ खींचा और हाथ सीधा उसकी कमीज़ के अंदर घुसा कर उसकी नंगी चूचियों को पकड़ लिया.
"ओह साहिल तुम क्या कर रहे हो" वो आह भर कर बोली और फिर चुप चाप मेरे किस का जवाब देने लगी.
हम कुच्छ देर तक खामोशी से काम लीला में लगे रहे.
"सपना" कुच्छ देर बाद मैने कहा
"हां" वो मुझसे लिपटी हुई बोली
"कुच्छ मांगू?"
"क्या?"
"एक बार अपने ये दिखा दो ना" मैने उसकी चूचियो पर हल्के से दबाव डाला
मेरी बात ने जैसे 1000 वॉट के झटके का काम किया. वो फ़ौरन छितक कर मुझसे अलग हो गयी.
"बिल्कुल नही" मेरा हाथ अपनी कमीज़ से निकालते हुए वो अपना दुपट्टा ठीक करने लगी
"प्लीज़"
"नही"
"एक बार"
"तुमने टच कर लिया यही बहुत बड़ी बात है"
"एक बार देखने दो ना"
"नही" वो अपने कपड़े ठीक करने लगी "और अब चलो यहाँ से. बहुत देर हो गयी है"
"थोड़ी देर तो रुक जाओ"
"रुकूंगी तो तुम फिर शुरू हो जाओगे"
"अच्छा नही करूँगा कुच्छ"
"पक्का?"
"एक आखरी किस दे दो फिर कुच्छ नही करूँगा" मैने कहा
"नही" उसने मना किया पर उसकी आँखों में भी वासना के डोरे सॉफ नज़र आ रहे थे. मैं जानता था के उस लम्हे को जितना मैं एंजाय कर रहा हूँ उतना वो भी कर रही है.
"अच्छा बैठ तो जाओ" वो खड़ी हुई तो मैने फिर उसका हाथ खींच कर नीचे बैठा लिया.
थोड़ी देर तक हम दोनो खामोशी से बैठे रहे.
"एक आखरी किस के बारे में क्या ख्याल है?"
मैने कहा तो वो तड़प कर ऐसे मेरी तरफ पलटी जैसे मेरे पुच्छने का इंतेज़ार ही कर रही थी. अपने होंठ उसने सीधा मेरे होंठो पर रख दिए और एक बार फिर चूमने लगी.
और मेरा हाथ जैसे अपने आप उसकी कमीज़ के अंदर घुस कर उसकी ब्रा से होता हुआ उसकी नंगी चूचियो पर आ टीका.
"एक बार दिखा दो ना प्लीज़" मैने फिर इलतेजा की
"बिल्कुल नही"
"प्लीज़"
"अपनी बेगम के देख लेना शादी के बाद"
उसकी बात सुन कर मेरी हसी छूट पड़ी.
"अब बस करो" कहकर वो अलग हुई और फिर संभाल कर बैठ गयी.
"बहुत फास्ट हो तुम" कुच्छ देर बाद वो बोली
"क्या?" मैने पुछा
"इतनी सी देर में कहाँ से कहाँ पहुँच गये. एक्सपर्ट हो. कितनी लड़कियों की ले चुके हो ऐसे?"
मैं सिर्फ़ हल्के से मुस्कुरा कर रह गया.
"सीरियस्ली साहिल. ज़रा सी देर में कितना कुच्छ कर डाला तुमने"
थोड़ी देर के लिए फिर खामोशी च्छा गयी. वो बैठी अपनी तेज़ हो चली साँसों को शांत करने की कोशिश करने लगी और मैं अपनी तेज़ हो चली धड़कन को नॉर्मल करने की कोशिश. पर मेरा दिल तो कर रहा था के एक बार फिर उसको पकड़ कर चूम लूम और उससे लिपट जाऊं.
और शायद यही हाल उसके दिल का भी था. इससे पहले के मैं कुच्छ करता, वो खुद ही घूम कर मेरी तरफ पलटी और मुझे सिमट गयी.
"क्या हुआ?"
"किस करो मुझे"
"अभी तो किया था"
"तब तुम्हें करना था. अब मुझे करना है"
मैं भला मना क्यूँ करता. मेरे लिए तो प्यासे को पानी मिलने जैसे बात हो गयी थी. एक बार फिर से वही सिलसिला शुरू हो गया. मैं उसे चूमने लगा और मेरा हाथ उसकी कमीज़ के अंदर घुस कर कभी उसकी नंगी चूचियो सहलाता तो कभी पेट तो कभी पीठ.
वो भी बराबर मेरा साथ दे रही थी पर शायद उसकी हद यहीं तक थी. इससे आगे वो कुच्छ करना चाहती नही थी. मैने भी जो मिले सो अच्छा सोचते हुए जितना मिल रहा था उसी का भरपूर फयडा उठाने की सोची.
मैं सपना को पिछले तीन साल से जानता था। 12वीं कक्षा में हम दोनों एक ही क्लास में थे, और उसके बाद हमने अलग-अलग कॉलेज जॉइन कर लिए थे। एक बार क्लास में उसने मुझसे एक शर्त लगाई थी, जिसके हारने पर उसे मुझे किस करना था। यह बात मैंने मजाक में कही थी और मुझे पता था कि वह मुझे किस नहीं करेगी, इसलिए जब वह शर्त हार गई, तो मैंने उसे मजाक में छेड़ा कि "मैं अभी भी अपने किस का इंतजार कर रहा हूं।"
अब इस बात को तीन साल हो चुके थे। हम दोनों के कॉलेज बदल गए थे और मिलने-जुलने का सिलसिला बहुत कम हो गया था। कुछ दिन पहले उसने मुझे फोन किया था और बताया था कि वह और उसका परिवार दूसरे शहर में शिफ्ट हो रहे हैं, और वह चाहती थी कि हम कुछ समय साथ में बिताएं। हम दोनों शहर के एक बड़े पार्क में बैठे थे।
दिन का लगभग 12 बज रहा था और पार्क में कोई नहीं था। हम एक कोने में, कुछ पेड़ों की आड़ में, चुपचाप बैठे हुए थे।
मैं हमेशा से जानता था कि उसे मुझसे स्कूल के दिनों में प्यार था, और उसने मुझे खुद बताया था कि वह कभी भी यह नहीं कह पाई। उसके बाद कॉलेज में उसकी एक और लड़के से दोस्ती हो गई थी, और हाल ही में उसका ब्रेकअप हुआ था।
फोन पर उसने मुझसे बताया था कि अगले हफ्ते वह दूसरे शहर शिफ्ट हो जाएगी, और यह बहुत संभव है कि यह हमारी आखिरी मुलाकात हो। हंसते हुए उसने यह भी कहा था कि शायद आज मुझे मेरा किस भी मिल जाए, और फिर हम दोनों उस बात पर हंस पड़े थे।
स्कूल के दिनो में हम दोनो बहुत क्लोज़ फ्रेंड्स हुआ करते थे इसलिए पार्क में मैं आराम से नीचे घास पर लेटा हुआ था और सर को उसकी टाँग पर रखा था. वो मेरे बालों में हाथ फिरा रही थी और हम गुज़रे दिनो और अपनी दोस्ती के किस्से एक दूसरे से डिसकस कर रहे थे.
नीचे लेटे हुए मुँह पर पेड़ के पत्तो के बीच से धूप पड़ने लगी तो मैं उठकर बैठ गया.
"क्या हुआ" मुझे उठता देख वो बोली "लेटे रहो"
"धूप पड़ रही है मुँह पर" मैने कहा और पेड़ से टेक लगा कर बैठ गया. और फिर मुझे जाने क्या सूझी के मैने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और उसे अपनी टाँगो के बीच कर लिया.
3 साल पहले हम दोनो ही एक दूसरे को बेहद पसंद करते थे और दोनो के दिल में दोस्ती के अलावा और भी कई बातें थी जो कभी सामने आ नही पाई थी. ये शायद उसकी का नतीजा था के जब मैने उसे यूँ अपने करीब खींचा तो वो भी चुप चाप सिमट कर मेरी बाहों में आ गयी और मेरी टाँगो के बीच अपनी कमर
मेरी छाती पर टीका कर आराम से बैठ गयी.
कुच्छ पल तक हम दोनो यूँ ही खामोश बैठे रहे. उस एक पल में यूँ करीब होकर बैठ ने से हमने पहली बार दोस्ती से आगे कदम उठाया था इसलिए शायद झिझक रहे थे के अब क्या कहें?
और फिर उसने वो किया जिसकी मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नही थी. आगे बढ़कर उसने मेरा गाल चूम लिया और धीरे से मेरे कान में बोली
"आइ लव यू"
मैं एक पल के लिए उसकी इस हरकत पर चौंक सा पड़ा. वो ऐसा करेगी इसका मुझे दूर दूर तक कोई अंदेशा नही था. मैने गर्दन घूमकर उसकी आँखों में आँखें डालकर देखा और आगे बढ़कर अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए.
वो एक छ्होटा सा किस था. हमारे होंठ आपस में मिले और कुच्छ पल साथ रहकर अलग हो गये.
पर जैसे उस एक किस ने चिंगारी का काम किया. कुच्छ पल बाद ही हमारे होंठ फिर आपस में मिले और इस बार जैसे एक दूसरे से चिपक कर रह गये. मैं उसके दोनो होंठों को अपने होंठों में पकड़ कर चूस रहा था और वो भी मेरा बराबर का साथ देते हुए पलटकर मेरे होंठ चूसने लगी.
"ओह साहिल !!!!"
मेरे होंठ थोड़ी देर बाद उसके होंठों से हटे और फिर उसके गाल और गर्दन को चूमने लगे. उसका हाथ मेरे बालों पर आ गया और पल भर को भी उसने मुझे रोकने की कोशिश नही की. मैं बारी बारी से कभी उसकी गर्दन, कभी गाल और कभी होंठों को चूमता रहा.
"साहिल कोई देख लेगा" कुच्छ पल बाद वो बोली
"कोई नही देखेगा. हम पेड़ की आड़ में हैं और इस वक़्त यहाँ कोई है भी नही" कहते हुए मैने अपना चूमने का काम जारी रखा.
थोड़ी देर के लिए वो फिर मेरा साथ देने लगी.
"साहिल हटो. मेरा पूरा मुँह गीला कर दिया तुमने"
"थोड़ा आयेज बढ़ जाऊं?"जवाब मैने पुछा
"क्या?" उसको शायद मेरी बात समझ नही आई पर मैने जवाब का इंतेज़ार किए बिना अपना एक हाथ उसकी एक छाती पर रख दिया.
"ओह साहिल" उसने मेरे जिस्म को अपने हाथों में ऐसे जाकड़ लिया जैसे करेंट का झटका लगा गो "मैं जानती थी तुम यही करोगे. तुम सब एक जैसे होते हो"
पर उसने उस वक़्त मेरा हाथ हटाने की कोई कोशिश नही की. मैं धीरे धीरे उसके होंठ चूमता हुआ अपने हाथ से उसकी चूचिया कमीज़ के उपेर से ही सहलाने लगा.
"बस अब हटो" उसने मेरा हाथ थोड़ी देर बाद अपनी छाती से हटा दिया.
पर मेरे अंदर वासना का तूफान जैसे जाग उठा था. मैं थोड़ी देर के लिए तो अलग हुआ पर कुच्छ पल बाद ही फिर उसके होंठ चूमने लगा और इस बार बिना झिझके अपना हाथ सीधा उसकी छाती पर रख दिया.
मेरे हाथ को अपने सीने पर महसूस करते ही उसने एक गहरी साँस ली और फ़ौरन हटा दिया.
मैने अगले ही पल फिर अपना हाथ उसके सीने पर रख दिया और वो फिर ऐसे काँपी जैसे बिजली का झटका लगा हो. उसने फिर मेरा हाथ हटाया और मैने फिर उसकी एक छाती पकड़ ली.
"बस करो साहिल. कोई देख लेगा"
"कोई नही है. अकेले हैं इस वक़्त हम यहाँ" मैने कहा और इस बार मैं और आगे बढ़ा.
मेरा हाथ इस बार उसके पेट पर आया और उसकी कमीज़ के एक छ्होर से होता हुआ अंदर जाकर सीधा उसके नंगे पेट को च्छू गया.
"ओह्ह्ह्ह साहिल" मेरा हाथ को अपने नंगे जिस्म पर महसूस करते ही उसने फिर एक गहरी साँस ली और कमीज़ के उपेर से मेरे हाथ को पकड़ लिया, जैसे कोशिश कर रही हो के मेरा हाथ उसके जिस्म के किसी और हिस्से को ना च्छुने पाए.
"हाथ हटाओ" मैने उससे मेरा हाथ छ्चोड़ने को कहा.
"सूट बहुत टाइट है साहिल"
"हाथ हटाओ ना प्लीज़"
"कमीज़ बहुत टाइट है मेरी"
"हाथ हटाओ सपना"
और उसने अपना हाथ हटा लिया और मेरा हाथ उसकी कमीज़ के अंदर उसके जिस्म को महसूस करने के लिए आज़ाद हो गया.
उसके चिकने पेट और पीठ पर फिसलता हुआ मेरा हाथ सीधा ब्रा के उपेर से उसकी एक चूची पर आ टीका.
उसकी चूचियाँ ना तो बहुत बड़ी थी और ना ही बहुत छ्होटी. जिस तरह से उसकी एक चूची पूरी मेरी एक मुट्ठी में समा गयी, उससे मैने उसके ब्रा का साइज़ 32 होने का अंदाज़ा लगाया.
"साहिल क्या कर रहे हो तुम" उसने ठंडी आह भरी पर मुझे रोकने या मेरा हाथ हटाने की कोई कोशिश नही की.
कभी मैं कमीज़ के अंदर हाथ डाले ब्रा के उपेर से उसकी चूचियाँ सहलाता, कभी उसके पेट पर हाथ फिराता तो कभी हाथ थोडा अंदर करके उसके नंगी पीठ को छुता.
"ओह साहिल !!!!" वो बराबर लंबी साँसें लेते हुए आहें भर रही थी और मुझे लिपटी जा रही थी. मेरे होंठ अब भी कभी उसके गालों पर होते तो कभी उसके होंठ और गले पर.
और इसी बीच मेरे हाथ एक बार फिर कमीज़ के अंदर उसके पेट को सहलाता उसकी चूची पर आया पर इस बार ब्रा के उपेर से आने के बजाय सीधा ब्रा के अंदर घुसा और उसकी नंगी चूची मेरे एक हाथ में आ गयी.
"साहिल !!!!!!" वो मेरी बाहों में ऐसे मचल रही थी पानी के बिना मच्चली.
मैने बारी बारी ब्रा के अंदर हाथ घुसा कर उसकी दोनो चूचियो को महसूस किया, सहलाया. मेरे खुद के जिस्म में जैसे एक आग सी लगी हुई थी और मुझे खुद को समझ नही आ रहा था के मैं कैसे इस पार्क में उस आग को ठंडी करूँ.
"चलो कहीं और चलते हैं" उसकी चूचियाँ सहलाते हुए मैने कहा
"कहाँ?" वो आहें भरती हुई बोली
मैने चारों तरफ देखा. हमसे थोड़ी देर एक फुलवारी लगी हुई थी और हम उसके पिछे आराम से छिप कर बैठ सकते थे.
"उधर चलते हैं" मैने इशारे से कहा
"नही मुझे नही जाना" उसने फ़ौरन मना कर दिया
"चलो ना"
"नही"
उसने फिर मना किया और इस बार वो संभाल कर बैठ गयी. मेरा हाथ उसने अपनी कमीज़ के अंदर से निकाल दिया और अपना दुपट्टा सही करने लगी.
"उधर एक फॅमिली आकर बैठी है. वो देख लेंगे हमें. अब प्लीज़ कुच्छ मत करो"
उसने पार्क के एक तरफ इशारा किया जहाँ एक परिवार चादर बिच्छा कर बैठने की तैय्यारि कर रहा था. पर उनका ध्यान हमारी तरफ बिल्कुल नही था और बहुत मुश्किल था के उनकी नज़र हम पर पड़ती या वो हमें नोटीस करते.
"नही देखेंगे" मैने फिर उसे अपनी तरफ खींचा और हाथ सीधा उसकी कमीज़ के अंदर घुसा कर उसकी नंगी चूचियों को पकड़ लिया.
"ओह साहिल तुम क्या कर रहे हो" वो आह भर कर बोली और फिर चुप चाप मेरे किस का जवाब देने लगी.
हम कुच्छ देर तक खामोशी से काम लीला में लगे रहे.
"सपना" कुच्छ देर बाद मैने कहा
"हां" वो मुझसे लिपटी हुई बोली
"कुच्छ मांगू?"
"क्या?"
"एक बार अपने ये दिखा दो ना" मैने उसकी चूचियो पर हल्के से दबाव डाला
मेरी बात ने जैसे 1000 वॉट के झटके का काम किया. वो फ़ौरन छितक कर मुझसे अलग हो गयी.
"बिल्कुल नही" मेरा हाथ अपनी कमीज़ से निकालते हुए वो अपना दुपट्टा ठीक करने लगी
"प्लीज़"
"नही"
"एक बार"
"तुमने टच कर लिया यही बहुत बड़ी बात है"
"एक बार देखने दो ना"
"नही" वो अपने कपड़े ठीक करने लगी "और अब चलो यहाँ से. बहुत देर हो गयी है"
"थोड़ी देर तो रुक जाओ"
"रुकूंगी तो तुम फिर शुरू हो जाओगे"
"अच्छा नही करूँगा कुच्छ"
"पक्का?"
"एक आखरी किस दे दो फिर कुच्छ नही करूँगा" मैने कहा
"नही" उसने मना किया पर उसकी आँखों में भी वासना के डोरे सॉफ नज़र आ रहे थे. मैं जानता था के उस लम्हे को जितना मैं एंजाय कर रहा हूँ उतना वो भी कर रही है.
"अच्छा बैठ तो जाओ" वो खड़ी हुई तो मैने फिर उसका हाथ खींच कर नीचे बैठा लिया.
थोड़ी देर तक हम दोनो खामोशी से बैठे रहे.
"एक आखरी किस के बारे में क्या ख्याल है?"
मैने कहा तो वो तड़प कर ऐसे मेरी तरफ पलटी जैसे मेरे पुच्छने का इंतेज़ार ही कर रही थी. अपने होंठ उसने सीधा मेरे होंठो पर रख दिए और एक बार फिर चूमने लगी.
और मेरा हाथ जैसे अपने आप उसकी कमीज़ के अंदर घुस कर उसकी ब्रा से होता हुआ उसकी नंगी चूचियो पर आ टीका.
"एक बार दिखा दो ना प्लीज़" मैने फिर इलतेजा की
"बिल्कुल नही"
"प्लीज़"
"अपनी बेगम के देख लेना शादी के बाद"
उसकी बात सुन कर मेरी हसी छूट पड़ी.
"अब बस करो" कहकर वो अलग हुई और फिर संभाल कर बैठ गयी.
"बहुत फास्ट हो तुम" कुच्छ देर बाद वो बोली
"क्या?" मैने पुछा
"इतनी सी देर में कहाँ से कहाँ पहुँच गये. एक्सपर्ट हो. कितनी लड़कियों की ले चुके हो ऐसे?"
मैं सिर्फ़ हल्के से मुस्कुरा कर रह गया.
"सीरियस्ली साहिल. ज़रा सी देर में कितना कुच्छ कर डाला तुमने"
थोड़ी देर के लिए फिर खामोशी च्छा गयी. वो बैठी अपनी तेज़ हो चली साँसों को शांत करने की कोशिश करने लगी और मैं अपनी तेज़ हो चली धड़कन को नॉर्मल करने की कोशिश. पर मेरा दिल तो कर रहा था के एक बार फिर उसको पकड़ कर चूम लूम और उससे लिपट जाऊं.
और शायद यही हाल उसके दिल का भी था. इससे पहले के मैं कुच्छ करता, वो खुद ही घूम कर मेरी तरफ पलटी और मुझे सिमट गयी.
"क्या हुआ?"
"किस करो मुझे"
"अभी तो किया था"
"तब तुम्हें करना था. अब मुझे करना है"
मैं भला मना क्यूँ करता. मेरे लिए तो प्यासे को पानी मिलने जैसे बात हो गयी थी. एक बार फिर से वही सिलसिला शुरू हो गया. मैं उसे चूमने लगा और मेरा हाथ उसकी कमीज़ के अंदर घुस कर कभी उसकी नंगी चूचियो सहलाता तो कभी पेट तो कभी पीठ.
वो भी बराबर मेरा साथ दे रही थी पर शायद उसकी हद यहीं तक थी. इससे आगे वो कुच्छ करना चाहती नही थी. मैने भी जो मिले सो अच्छा सोचते हुए जितना मिल रहा था उसी का भरपूर फयडा उठाने की सोची.